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________________ वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ १७३ (वेगवतीलम्भ : पृ. २४८); बृहस्पतिशर्मा (नीलयशालम्भ : पृ. १८०), भृगु (कपिलालम्भ : पृ. १९९), सम्भित्रश्रोत्र (बन्धमतीलम्भ : पृ. २७६-२७७; केतुमतीलम्भ : पृ. ३११-३१७); ज्योतिर्विद्या का पारगामी ब्राह्मण शाण्डिल्यायन (केतुमतीलम्भ : पृ. ३१७) और शशबिन्दु (तत्रैव : पृ. ३१७)। कथाकार ने इन नामों को भी ज्योतिस्तत्त्व के संकेतक अर्थगर्भ शब्दों को समासित कर निर्मित किया है। इनके अतिरिक्त भी अनेक अज्ञातनामा नैमित्तिकों के भविष्य-भाषण का उल्लेख है। यहाँ मूलकथा में वर्णित ज्योतिस्तत्त्व के संकेतक कतिपय प्रसंग उद्धरणीय हैं। स्वप्नफल : 'वसुदेवहिण्डी' के प्राय: सभी प्रमुख पात्रों, विशेषकर तीर्थंकरों के साथ जन्म-विषयक भविष्यफल (स्वपफल) जुड़ा हुआ है। प्रारम्भ के 'कथोत्पत्ति' अधिकार में ही उल्लेख है कि राजगृह के निवासी जम्बूस्वामी की माता धारिणी ने सुप्तावस्था में पाँच स्वप देखे थे : निधूम अग्नि, विकसित कमलों से भरा पद्मसरोवर, फल के भार से झुका शालिवन, निर्जल मेघ के रंग का चार दाँतोंवाला हाथी और रूप, रस तथा मनोरम गन्ध से युक्त जामुन के फल । अर्हतों के कथनानुसार, जम्बूस्वामी के पिता ऋषभदत्त ने स्वप्नफल बताते हुए अपनी पत्नी धारिणी को आश्वस्त किया कि “तुम्हें उत्तमपुत्र प्राप्त होगा । ब्रह्मलोक से च्युत होकर देवता तुम्हारे गर्भ में आये हैं।” इसके बाद धारिणी को जिनसाधु की पूजा का दोहद उत्पन्न हुआ। नौ महीने बीतने पर धारिणी को सुलक्षण और वर्चस्वी पुत्र प्राप्त हुआ। स्वप्न में धारिणी ने जामुन के फल देखे थे, इसलिए पुत्र का नाम 'जम्बू' रखा गया (पृ. २-३)। रुक्मिणी के गर्भ में प्रद्युम्न के आने के प्रसंग में कहा गया है कि रुक्मिणी ने एक स्वप्न में, अपने मुँह में सिंह को प्रवेश करते हुए देखा। स्वप्नफल बताते हुए केशव ने 'उत्तम पुत्र प्राप्त होगा', ऐसा कहकर रुक्मिणी को आश्वस्त किया (पृ. ८२ : पीठिका)। ऋषभस्वामी के जन्म के समय भी उनकी माता मरुदेवी ने चौदह शुभ स्वप्न देखे थे, जिनमें पहला स्वप्न था, सुप्तावस्था में मरुदेवी के मुँह में वृषभ का प्रवेश होना । उक्त चौदहों स्वप्नों का फल बताते हुए ऋषभस्वामी के पिता नाभिकुमार ने भविष्यवाणी की : “आयें ! तुमने उत्तम स्वप्न देखा है, तुम धन्य हो । नौ महीने बीतने पर तुम हमारे कुलकर पुरुषों में प्रधान, त्रैलोक्यप्रकाशक, भारतवर्ष के तिलक-स्वरूप पुत्र को जन्म दोगी (नीलयशालम्भ : पृ. १५८-१५९) ।" दक्षप्रजापति ने अपनी पत्नी (पहले पुत्री, बाद में पत्नी) मृगावती के सात महास्वप्न देखने पर उनका फल बताते हुए कहा था कि तुमने जिस प्रकार के स्वप्न देखे हैं, तदनुसार तुम्हारा पुत्र भारत के आधे भाग का स्वामी होगा (बन्धुमतीलम्भ : पृ. २७६) । स्वामी शान्तिनाथ की माता अचिरा ने भी सुप्तावस्था में चौदह स्वप्न देखे थे। उसके बाद ही अचिरा के गर्भ में शान्तिनाथ आये थे । शुभं स्वप्नों के उत्तम फल के रूप में अचिरा ने शान्तिनाथ जैसे तीर्थंकर को पुत्र के रूप में प्राप्त किया (केतुमतीलम्भ : पृ. ३४०)। इसी प्रकार, कुन्थुस्वामी की माता ने कुन्थुस्वामी के गर्भ में आने के पूर्व (चौदह) महास्वप देखे थे। ज्ञातव्य है कि परम्परया तीर्थंकर की माताएँ प्राय: चौदह महास्वप्न, गर्भधारण के पूर्व, देखती थीं। (मतान्तर है कि भगवान् महावीर की माता त्रिशला ने सोलह महास्वप्न देखे थे।) अरजिन की माता ने भी महापुरुष को उत्पत्ति की सूचना देनेवाले स्वप देखे थे (केतुमतीलम्भ : पृ. ३४४, ३४६)।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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