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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र से इस बात का भी पता चलता है कि आदिकाल के ज्योतिषी भी हर तरह के ज्योतिष्क और अन्य गणितों से पूर्ण परिचित थे। उस समय शरीर के फड़कने का क्या अर्थ है, स्वप का फल कैसा होता है, विभिन्न प्रकार के शुभ कर्मों के करने का शुभ मुहूर्त कौन-सा है, युद्ध किस दिन करना चाहिए, सेनापति कौन हो, जिससे युद्ध में सफलता मिले, आदि बातों पर बड़ी सूक्ष्मता से विचार किया जाता था। इस युग के ज्योतिषी केवल शुभाशुभ समय से ही परिचित नहीं थे, अपितु वे प्राकृतिक ज्योतिष के आधार पर हाथी, घोड़ा, खङ्ग आदि के इंगितों से भी भावी शुभाशुभ फल का निर्देश करते थे। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार, ई. पू. १०० से ई. ३०० तक के ज्योतिषविषयक साहित्य के अध्ययन से स्पष्ट है कि उस काल में ज्योतिष-शास्त्र के अध्ययन में आलोचनात्मक दृष्टि विकसित नहीं हुई थी।
'वसुदेवहिण्डी' के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उस काल में पंचरूपात्मक (होरा, गणित, संहिता, प्रश्न और निमित्त) ज्योतिष में फलित ज्योतिष में सम्बद्ध संहिता, प्रश्न और निमित्त का ततोऽधिक विकास हो चुका था। संहिता में भूशोधन, दिक्शोधन, शल्योद्धार, मेलापक, गृहारम्भ, गृहप्रवेश, जलाशय-निर्माण, मांगलिक कार्यों के मुहूर्त, उल्कापात, वज्रपात, वृष्टि, ग्रहण-फल आदि बातों का विस्तारपूर्वक विचार किया गया है। प्रश्नशास्त्र तत्काल फल बतानेवाला शास्त्र है और शकुनशास्त्र में, जिसका अपर पर्याय निमित्तशास्त्र भी है, अरिष्ट-विषय का प्रतिपादन मिलता है।
संघदासगणी के काल में चूँकि फलित ज्योतिष पर्याप्त विकसित हो चुका था, इसलिए उन्होंने अंगलक्षण, शकुनकौतुक, पुरुषभेद, जन्म-नक्षत्र, सामुद्रिकशास्त्र, अरिष्ट-विचार, भूकम्प, वज्रपात, स्त्रीपुरुष-लक्षण, शुभ तिथि, करण, मुहूर्त, इष्टानिष्टसूचना, दीर्घायु-अल्पायु होने के लक्षण, स्वप्नलक्षण आदि साधारण एवं असाधारण सभी प्रकार के शुभाशुभों के विवेचन को अपनी महत्कथा 'वसुदेवहिण्डी' में समाविष्ट किया है।
सिद्ध-अर्हतों, मुनियों या श्रमण-चारणों द्वारा किसी पात्र के पूर्वभव, वर्तमान भव और भावी भव के बारे में उसकी यथार्थ स्थिति के यथावत् आदेश (जैसे, पूर्वभव में कौन था, वर्तमान भव में क्या है और भविष्य में कहाँ, कब और कैसा होगा?) का अंकन संघदासगणी पर 'भृगुसंहिता' की आदेश-कथन-शैली के प्रभाव को द्योतित करता है। ज्योतिष-सम्बन्धी सामान्य लोकप्रसिद्धि है कि विवाह, जन्म और मरण कहाँ कब होगा, कोई नहीं बता सकता : 'विवाहो जन्म मरणं कदा कुत्र भविष्यति?' किन्तु, 'वसुदेवहिण्डी' के नैमित्तिक इन तीनों के विषय में निश्चित तिथि और समय तथा घटना घटने के ढंग पर सुनिश्चित अकाट्य भविष्यवाणी करते हैं। इस तरह की भविष्यवाणी का कथन वे ही मुनि करते हैं, जो ‘अवधिज्ञान' से सम्पन्न हैं। ये अवधिज्ञानी मुनि प्राय: ज्योतिषियों या नैमित्तिकों की ही प्रतिनिधि भूमिका में उपन्यस्त हुए हैं।
संघदासगणी ने ज्योतिषी के लिए अधिकांशत: 'नैमित्तिक' शब्द का प्रयोग किया है, कहीं-कहीं 'सांवत्सरिक' का भी। दोनों ही ज्योतिष-तत्त्व के विशिष्ट पक्ष (निमित्त और वर्ष) के वाचक हैं । 'वसुदेवहिण्डी' में लगभग दस ज्योतिषी-पात्रों के नामों की कल्पना कथाकार ने की है। जैसे: केशव (पीठिका : पृ ८२); अश्वबिन्दु (केतुमतीलम्भ : पृ. ३११) क्रौष्टुकि (श्यामाविजयालम्भ: पृ. ११९); दीपशिख (केतुमतीलम्भ : पृ. ३१७); देविल (मदनवेगालम्भ : पृ. २३१); प्रजापति शर्मा १. द्र. 'भारतीय ज्योतिष', प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, प्रथम संस्करण, सन् १९५२ ई., पृ. ८२