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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा गर्भ में कृष्ण के अवतीर्ण होने के पूर्व उनकी माता देवकी ने सात महास्वप देखे थे। वसुदेव ने अतिमुक्तक चारणश्रमण के आदेशानुसार, स्वप्नफल बताते हुए कहा था कि तुम्हारा यह सातवाँ पुत्र कंस और जरासन्ध को मारनेवाला होगा; क्योंकि चारणश्रमण का वचन विफल नहीं होता (देवकीलम्भ : पृ. ३६९)।
ज्योतिषियों, मुनियों और तीर्थंकरों की भविष्यवाणियाँ : . .
तपोनिरत प्रसन्नचन्द्र के बारे में राजा श्रेणिक ने जब भगवान् महावीर से उसके अगले जन्म के बारे में पूछा, तब पहले उन्होंने बताया कि वह सातवीं पृथ्वी (नरक) में जायगा। पुन: थोड़ी देर बाद उक्त प्रश्न के दुहराने पर भगवान् महावीर ने कहा कि इस समय मृत्यु को प्राप्त होने पर वह सर्वार्थसिद्ध लोक (अनुत्तर देवलोक का पाँचवाँ निवास-भवन) में जायगा। इस द्विविध कथन का रहस्य तपोध्यानी प्रसन्नचन्द्र के मन की क्षण-क्षण परिवर्तित स्थिति में निहित है। प्रथम प्रश्न के समय प्रसन्नचन्द्र रौद्रध्यान में था और द्वितीय प्रश्न के समय वह पुन: प्रशस्त ध्यान की स्थिति में लौट आया था (कथोत्पत्ति : पृ. १७) ।
दाक्षिणात्य विद्याधर-श्रेणी के शंखपुर नगर के राजा पुरुषानन्द और उसकी पत्नी श्यामलता ने जब धर्मघोष नामक चारणश्रमण से अपनी पुत्रियों—विद्युद्वती और विद्युल्लता के भावी पति के बारे में पूछा, तब उन्होंने भविष्यवाणी करते हुए बताया कि “कामोन्मत्त नामक विद्याधर का जो वध करेगा, वही (अर्थात् धम्मिल्ल) तुम्हारी पुत्रियों का पति होगा।” साधु की बात सुनकर राजदम्पति हर्ष और विस्मय से भर उठे (धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ६८)। इसी प्रकार , गगननन्दन नगर के निवासी विद्याधरनरेश जाम्बवान् की पुत्री जाम्बवती के बारे में आकाशचारी जैनमुनि ने भविष्यवाणी की थी कि वह अर्द्धभरताधिपति (अर्थात् कृष्ण) की पली होगी (पीठिका : पृ. ७९) सत्यभामा जब आसत्रप्रसवा थी, तब नारद ने चारणश्रमण के आदेशानुसार, उनके भविष्य-कथन का समर्थन किया था कि उसे (सत्यभामा को) निश्चय ही पुत्र होगा (पीठिका, पृ. ८४) । सत्यभामा के लिए, उसके आग्रह पर, प्रद्युम्न के समान ही पुत्र की प्राप्ति की इच्छा से कृष्ण जब हरिनैगमेषी देव की आराधना कर रहे थे, तब उस देव ने कृष्ण के लिए भविष्यवाणी की थी कि जिस देवी के साथ आपका पहले समागम होगा, उसे ही प्रद्युम्न के समान पुत्र होगा (पीठिका, पृ.९७)।
अदृष्ट देवता ने अदृष्टवाणी द्वारा राजा अर्चिमाली को सचेत किया था कि तुमने लतागृह में प्रशस्त ध्यान में लीन नन्द और सुनन्द चारणश्रमणों के निकट रहकर मृगपर बाण फेंका है, इसलिए जीवरक्षक साधु तुमपर कुपित हो जायेंगे, तो देवता भी नहीं बचा सकेगा, तुम्हारा विनाश हो जायगा (श्यामलीलम्भ : पृ. १२४)। अदृष्ट देवी ने ही वसुदेव को बताया था कि रोहिणी उनकी पत्नी होनेवाली है और ढोलकिये के रूप में उनका वह वरण करेगी (रोहिणीलम्भ : पृ. ३६४) । गन्धर्वदत्ता के पालक पिता चारुदत्त की माता, चम्पापुरी की सेठानी भद्रा को पुत्र नहीं होता था। चारु नाम के गगनचारी मुनि से सेठानी ने अपनी विपुल सम्पत्ति को भोगनेवाले पुत्र की प्राप्ति के विषय में जिज्ञासा की, तो अमोघदशी मुनि ने बताया कि 'तुम्हें थोड़े ही दिनों में पुत्र प्राप्त होगा।' यह कहकर मुनि अदृश्य हो गये। चारु मुनि ने पुत्र होने की भविष्यवाणी की थी, इसीलिए