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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
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'वसुदेवहिण्डी' में प्रकीर्ण कथाओं के माध्यम से मूलकथा में स्थापत्य की अनेक विधाएँ समाविष्ट हो गई हैं। कालमिश्रण, सोद्देश्यता, अन्यापदेशिकता, राजप्रासाद-स्थापत्य, रूपरेखा की मुक्तता, वर्णन - वैचित्र्य, मण्डनशिल्प, भोगायतन- स्थापत्य, प्ररोचन - शिल्प, उपचारवक्रता, विशेषणवक्रता, विरेचन- सिद्धान्त, रोमांस की योजना, सिद्ध प्रतीकों का प्रयोग, नये प्रतीकों का निर्माण, कुतूहल की योजना, औपन्यासिकता, वृत्ति - विवेचन, पात्रबहुलता, चरित्र का उदात्तीकरण, अलौकिक तत्त्वों की योजना, पराप्राकृतिक एवं परामनोवैज्ञानिक शिल्प, भाग्य और संयोग का नियोजन आदि 'वसुदेवहिण्डी' के ऐसे कथा - स्थापत्य हैं, जो प्राकृत-कथाओं, विशेषकर चरित-कथाओं के सम्पूर्ण वैशिष्ट्य का उद्भावन करते हैं। 'वसुदेवहिण्डी' की प्रकीर्ण कथाएँ शरीर में बिखरे शिराजाल की तरह हैं; जिनका चेतना-प्रवाह अन्तत: मूलकथा के सुषुम्णा - शीर्ष में जाकर केन्द्रित हो गया है !
प्रकीर्ण कथाओं में पौराणिक कथाओं का महत्त्व :
'वसुदेवहिण्डी' की प्रकीर्ण कथाओं में पौराणिक कथाओं के महत्त्व निर्धारण के सन्दर्भ में यह ज्ञातव्य है कि 'वसुदेवहिण्डी' की पूरी मूलकथा, अर्थात् वसुदेवचरित पौराणिक कथा ही है । डॉ. ए. एन्. उपाध्ये ने प्राकृत-कथाओं के गुण- वैशिष्ट्य को निरूपित करते हुए उनके पाँच स्वरूप' निर्धारित किये हैं । जैसे : १. प्रबन्ध-पद्धति में शलाकापुरुषों के चरित; २. तीर्थंकरों या शलाकापुरुषों में किसी एक व्यक्ति का विस्तृत चरित; ३. रोमाण्टिक धर्मकथाएँ; ४. अर्द्ध- ऐतिहासिक प्रबन्ध-कथाएँ तथा ५ उपदेशप्रद कथाओं के संग्रह (कथाकोष आदि) । 'वसुदेवहिण्डी' में यद्यपि उक्त पाँचों स्वरूपों का समाहार पाया जाता है, तथापि स्वरूप निर्धारण की दृष्टि से इसे दूसरे प्रकार की कथाशैली में परिगणित किया जायगा । क्योंकि, इसमें शलाकापुरुष या महापुरुष वसुदेव के कथासूत्र का आश्रय लेकर उनकी पूर्वभवावली तथा अन्य सम्बद्ध साधारण और असाधारण पात्रों के चरितों को मिलाकर कथाओं की रचना की गई है। फलतः, यह पौराणिक शैली का कथाग्रन्थ है ।
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जैनाम्नाय में तिरसठ शलाकापुरुष प्रसिद्ध हैं । शलाकापुरुष का चरित्र अतिशय उदात्त और अनुकरणीय होता है । उनका समग्र जीवन समाजोद्धार या लोकोपकार के कार्य के प्रति समर्पित होता है । उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व में साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा विशिष्टता और चमत्कार प्राप्त होता है । वसुदेव, चूँकि शलाकापुरुष हैं और उनकी जीवनगाथा को पौराणिक शैली में वर्णित किया गया है, इसीलिए इस कथाग्रन्थ में पौराणिक तत्त्वों की भरमार है, जिनमें इक्ष्वाकुवंश, हरिवंश एवं गौतम, दशार्ह और काश्यपवंश आदि राजवंशीय राजाओं अथवा धर्मतीर्थ के प्रवर्त्तक तीर्थंकरों; भरत, सगर, सनत्कुमार, सुभौम, महापद्म, रत्नध्वज, वज्रदत्त, वज्रनाभ, वज्रसेन आदि चक्रवर्त्तियों; सैकड़ों विद्याधरों और विद्याधरियों; राजाओं और राजपुत्रों; रानियों और राजकुमारियों, दिक्कुमारियों और देव-देवियों; ताप-तापसियों और परिव्राजक-परिव्राजिकाओं; आकाशगामी चारणश्रमणों और श्रमणाओं; आश्रमों और चैत्यों एवं उद्यानों और वनों; देवलोक और स्वर्गलोकों; नरकों और 'पातालभूमियों; परमेष्ठियों और प्रतिवासुदेवों; नारदों और ब्राह्मणों और उनके पुत्र-पुत्रियों; अधार्मिक राक्षसों और मातंगों; जनपदों, पर्वतों और सरोवरों; विद्याओं और विमानों आदि के विपुल - विस्तृत वर्णन उपलभ्य हैं।
१. हरिषेण - कृत 'बृहत्कथाकोष', अँगरेजी भूमिका, पृ. ३५ ।