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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा
'वसुदेवहिण्डी' की प्रकीर्ण कथाओं में अनेक पौराणिक धार्मिक कथाएँ भी हैं। समग्र 'वसुदेवहिण्डी' रोमानी ढंग से प्रस्तुत की गई धर्मकथा है, इसलिए इसकी प्रकीर्ण कथाओं में धार्मिक पौराणिक कथाओं की संकीर्णता या मिश्रण स्वाभाविक है । यद्यपि, इस महत्कथा में कतिपय ऐसी भी प्रकीर्ण कथाएँ हैं, जिनमें कुछ अर्द्ध- ऐतिहासिक महत्त्व के हैं और कुछ का उपदेशात्मक महत्त्व है । अर्द्ध- ऐतिहासिक कथाओं में भगवान् महावीर के समकालीन राजकीय व्यक्ति, व्यापारी, श्रेष्ठी, धर्मप्रचारक एवं कलाविदों के चरित अंकित हैं । उपदेशात्मक कथाओं में असत् से सत् की ओर जाने की प्रेरणा को विभिन्न धार्मिक रूपों के माध्यम से सम्प्रेषित किया गया है और प्रत्यासत्त्या उनमें सदाचार, नैतिक प्रोत्साहन और लोकरंजन के उपादान सहज ही विनियुक्त हो गये हैं ।
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‘वसुदेवहिण्डी' की प्रकीर्ण कथाओं में पौराणिक कथाओं का महत्त्व इस दृष्टि से अधिक है कि इनमें वैदिक या ब्राह्मण- परम्परा के अलौकिक विश्वासों को लौकिक धरातल प्रदान किया गया है और देवी-देवताओं में भी मानव-सामान्य दुर्बलताओं की स्थिति-सम्भाव्यता की ओर संकेत किया गया है। क्योंकि, श्रमण परम्परा का मूल उद्घोष है कि सब कुछ मानवायत्त या पौरुषायत्त है । 'दैवाधीनं जगत्सर्वम्' को वह मान्यता नहीं प्रदान करती । उदाहरण के लिए, वैदिक परम्परा की ऋष्यशृंग की कथा को वल्कलचीरी की कथा में, बलि-वामन की कथा को विष्णुकुमार की कथा में, राजा शिबि की कथा को कबूतर और बाज की कथा में, दक्षप्रजापति की कथा को पोतनपुर के राजा दक्ष की कथा में, गौतम और अहल्या की कथा को अन्धगौतम और अहल्या की कथा में, वाल्मीकिरामायण की कथा को रामायण की कथा में, देवकी और वसुदेव की प्रसिद्ध महाभारतीय कथा को देवकी और वसुदेव की आर्हतीय कथा में अन्तर्भावित करके देखा जा सकता है। इनके अतिरिक्त निम्नांकित पौराणिक कथाएँ भी अपना विशिष्ट मूल्य रखती हैं :
१. अन्धकवृष्णि की कथा ( प्रतिमुख: पृ. ११२); २. अरजिन की कथा ( केतुमतीलम्भ : पृ. ३४६); ३. ऋषभजिन की कथा (नीलयशालम्भ: पृ. १५७ ) ४. कुन्थुजिन की कथा (केतुमतीलम्भ: पृ. ३४४), ५. जमदग्नि, परशुराम और कार्त्तवीर्य की कथा ( मदनवेगालम्भ : पृ. २३५); ६. त्रिपृष्ठ वासुदेव की कथा (बन्धुमतीलम्भ: पृ. २७५ तथा केतुमतीलम्भ : ३११); ७. दशार्ह राजाओं की कथा ( श्यामाविजयालम्भ : पृ. ११४), ८. नारद, पर्वतक और वसुराज की कथा (सोम श्रीलम्भ: पृ. १८९) ९. प्रद्युम्न कुमार की कथा (पीठिका: पृ. ७७); १०. बाहुबलि की कथा (सोमश्रीलम्भ: पृ. १८६), ११. भरत चक्रवर्ती की कथा (तत्रैव : पृ. १८६); १२. मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत और नमिजिन की कथा ( केतुमतीलम्भ: पृ. ३४८), १३. शान्तिजिन की कथा (तत्रैव : पृ. ३१०); १४. शाम्बकुमार की कथा (पीठिका: पृ. ७७); १५. चक्रवर्ती राजा सगर की कथा ( प्रियंगुसुन्दरीलम्भ: पृ. ३००), १६. सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा ( मदनवेगालम्भ: पृ. २३५); १७. हरिवंश की उत्पत्ति की कथा (पद्मावतीलम्भ: पृ. ३५६ ); १८. श्रेयांसकुमार की कथा (नीलयशालम्भ: पृ. १९६४) आदि ।
निष्कर्ष :
'वसुदेवहिण्डी' में संघदासगणी द्वारा परिगुम्फित पौराणिक कथाएँ अनेक कथारूढियों और मिथक- प्रतीकों से समाकीर्ण हैं तथा तीर्थंकरों के अतिरिक्त जैनाम्नाय में परिदीक्षित राम और