SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा ४५ लाख मील) से ऊपर के अन्तरिक्ष [ जहाँ आकाशगंगा (मिल्की वे) के प्रवाह में तारक-मण्डल अवस्थित है ] तक को विस्मयकारी कल्पना की है। प्रस्तुत कथा वैदिक-पौराणिक परम्परा की बलि और वामन की कथा का जैन रूपान्तर है, जिसमें 'विष्णुगीत' की उत्पत्ति का मिथकीय आयाम उपस्थित किया गया है। इस कथा का नायक निश्चय ही मिथिक व्यक्तित्व का प्रतीक है, जो जातीय जीवन को प्रभावित करनेवाली असाधारण महत्त्व की घटनाओं और उनके स्वरूप का घटक होने के कारण मिथिक अभिप्रायों से युक्त है। इसके अतिरिक्त प्रेम, धर्म और शौर्य या साहसिक कृत्यों का परिदृश्य के रूप में चित्रण आदि रोमांस के अनिवार्य उपादान भी इस मिथक-कथा में विद्यमान हैं। रोमांस के अन्य उपादान काल्पनिक तथा पराप्राकृतिक तत्त्वों का समावेश भी इसमें है। रहस्यात्मकता, कुतूहल तथा स्वैर कल्पना के तानों-बानों से बुनी गई यह कथा मिथकीय चेतनापरक कथाओं में अपनी द्वितीयता नहीं रखती। अथवा, ऐसा भी कहा जा सकता है कि 'वसुदेवहिण्डी' की सभी मिथक-कथाएँ बेजोड़ हैं। सबकी अपनी-अपनी जातीय विशेषता है और उनकी अलग-अलग पहचान भी। ___ विष्णुकुमार की भाँति मिथिक व्यक्तित्व से सम्पन्न अनेकानेक पात्र 'वसुदेवहिण्डी' में हैं, जिनमें विद्याधर अमितगति (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १४०), ललितांगदेव (नीलयशालम्भ : पृ. १६६), चक्रवर्ती सुभूम (मदनवेगालम्भ : पृ. २३८), नारद (पीठिका : पृ. ८०) और स्वयं इस महत्कथा के नायक वसुदेव आदि तो कूटस्थ हैं। वसुदेव तो बड़े-बड़े प्राणघाती संकटों में घिर जाते हैं, किन्तु मिथकीय उपादानों के बल से तुरत संकटमुक्त भी हो जाते हैं। कहना तो यह चाहिए कि बृहत्तर भारत के पर्यटनकारी वसुदेव अपने युग के फाहियान या ह्वेनसांग से भी बढ़कर थे और यह वैशिष्ट्य उन्हें मिथकीय उपादानों के पर्यावरण के कारण ही प्राप्त था। 'वसुदेवहिण्डी' के कथारूढिपरक मिथकीय उपादानों में विद्याधर के स्पर्श से विष का नाश होना (धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ४७); आकाशवाणी (धम्मिल्ल. : पृ. ३४ ; वेगवतीलम्भ : पृ. २५०); पुष्पवृष्टि (श्यामाविजयालम्भ : पृ. ११८ ; गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १३१ ; तत्रैव : पृ. १४५), हाथी का आकाश में उड़ना (पद्मालम्भ : पृ. २०१); अप्सराओं का आकाश में विचरण करना तथा उनका अदृश्य होना (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १४३); चक्ररत्न की कल्पना (केतुमतीलम्भ : पृ. ३३०); मुनियों का आकाश में चलना, महिषी की कोख से मानव-शिशु का जन्म लेना (बन्धुमतीलम्भ : पृ. २७८) आदि मिथकों का अपनी मनोरंजकता, कुतूहल-सृष्टि, विस्मय और रोमांस की दृष्टि से महार्घ महत्त्व है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि 'वसुदेवहिण्डी' की कथावस्तु का केन्द्रीय अभिप्राय 'रोमांस' है। लेकिन, यह नहीं कहा जा सकता कि इस अभिप्राय को जान लेने से रचना की अवगति पूरी हो जाती है। भारत के महान् कथाकार आचार्य संघदासगणिवाचक ने अपने मिथकीय अभिप्राय या अभिप्रायों की अभिव्यक्ति के लिए रहस्य और रोमांस का जो अतिलौकिक और ऐन्द्रजालिक वातावरण खड़ा किया है, वह इस कथाग्रन्थ के स्रोतों, निर्देशों, बिम्बों या प्रतीकों, पुरानी कथा-परम्परा के शब्दों, भावों या अर्थशक्तियों, अथच कथारूढियों और मिथों के विशद अध्ययन के बावजूद विश्लेषण से परे रह जाता है। विश्वदर्शन की पूर्णतम अभिव्यक्ति के लिए संघदासगणी द्वारा की गई मिथों की रचना कथाजगत् के लिए एक उल्लेखनीय प्रयल है। मिथों के आधार पर कथाकार ने मानव-सभ्यता और मानव-मनोविज्ञान, दोनों की युगपत् व्याख्या की है।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy