________________
१३१
वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ ससुर जरासन्ध के निर्देशानुसार, राजा जितशत्रु ने इन्द्रसेना को बन्धन, रुन्धन आदि से मुक्त कर दिया। इसके बाद राजा ने इन्द्रसेना को मृत परिव्राजक की हड्डियाँ दिखलाकर उससे कहा कि 'यही तुम्हारा प्रियतम है।' तब इन्द्रसेना ने हड्डियों को चुनकर और उन्हें कपड़े से बाँधकर माला बनाई और उसे अपने गले में लटका लिया। उसके बाद राजा के कंचुकियों ने परिचारिकाओं के साथ उसे आश्रम में ले जाकर छोड़ दिया। अन्त में वसुदेव घूमते-घामते उस आश्रम में पहुँचे और तापसों के आग्रह करने पर उन्होंने अपनी विशिष्ट शक्ति से इन्द्रसेना को पिशाच के आवेश से मुक्त कर दिया और वह फिर रानी बनकर जितशत्रु के अन्त:पुर में रहने लगी।
प्रस्तुत रूढकथा में नायिका के परिव्राजक की विद्या से वशीभूत होने की चिराचरित कथारूढि के अतिरिक्त, नायिका के पिशाचाविष्ट होने और उसके लिए लौकिक भूत-चिकित्सा किये जाने तथा विशिष्ट शक्ति से उसके प्रकृतिस्थ होने आदि कई लोकरूढियों का एक साथ चित्रण हुआ है।
जैसा पहले कहा गया है, 'वसुदेवहिण्डी' में परिगुम्फित उपरिप्रस्तुत लौकिक एवं अलौकिक रूढकथाएँ निदर्शन-मात्र हैं। इस महत्कथा की पारम्परिक एवं कवि-कल्पित कथारूढियाँ एक स्वतन्त्र शोध-अध्ययन का विषय है। 'वसुदेवहिण्डी' की रोमांसबहुल कथानक-रूढियाँ तो अनुल्लंघनीय क्रोशशिला के समान हैं, जिनको मार्गदर्शक मानकर परवर्ती प्राकृत-गद्यसाहित्य की अबाध यात्राएँ हुई हैं। इन कथा-यात्राओं में आचार्य हरिभद्रसूरि (अष्टम-नवम खष्टशतक) की 'समराइच्चकहा' ( 'समरादित्यकथा') अपनी पांक्तेयता की दृष्टि से उल्लेखनीय है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि 'वसुदेवहिण्डी' की रूढकथाओं या अभिप्रायों में लोकरूढियों और पूर्वभव की स्मृतियों को आधार बनाकर सम्भावनाओं को पृथुल विस्तार दिया गया है, जो भावप्रवण कथाकार संघदासगणी की सटीक कल्पना से मूर्तित होकर विभिन्न बिम्बों
और विचार-चित्रों में परिणत हो गई हैं। अतएव, अर्थग्रहण और भावग्रहण की दृष्टि से 'वसुदेवहिण्डी' की संवेगों की सघनता से अवगुण्ठित रूढकथाएँ लोकजीवन का सामान्य-विशेषात्मक साधारणीकरण उपस्थित करती हैं। साथ ही, ये अपनी चित्रात्मकता और बिम्बधर्मिता की ऐन्द्रिय अनुभूति की अभिव्यक्ति से इस प्रकार सम्पन्न हैं कि हमारी दृष्टि, श्रवण, घाण, स्पर्श और रसना को एक साथ अनुरंजित कर देती हैं। कहना न होगा कि संघदासगणी ने अपनी रूढकथाओं में, उत्कृष्ट कल्पना-शक्ति द्वारा भाव और वस्तुशिल्प को एक नवीन सन्दर्भ या अनुक्रम देकर अनेक मार्मिक छवियों का आधान किया है।
मिथक-कथा :
रूढकथा के पर्यवेक्षण के क्रम में कथारूढि की विवेचना के बाद प्रत्यासत्या मिथक-कथा का पर्यालोचन अपेक्षित है। कथारूढि और मिथक ये दोनों ही रूढकथा से अन्तरंगता के साथ सम्बद्ध हैं। कथारूढि यदि लौकिक विश्वासों पर आधृत होती है, तो मिथक का आधार होता है धार्मिक विश्वास । 'मिथ' या 'मिथक' का विश्लेषण करते हुए डॉ. कुमार विमल ने कहा है कि “ 'मिथ' में धर्म की तरह विश्वास की व्यवस्था प्रधान रहती है। 'मिथ' की मुख्य विशेषता