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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
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लगे। अन्त में, हाथी वशंवद होकर आलसी बैल की भाँति मन्दगामी बन गया। परिजन और पुरजन वसुदेव को धन्यवाद देने लगे। कुछ स्त्रियाँ फूल और गन्धचूर्ण बिखेरने लगीं। ____ बालिका प्रकृतिस्थ होकर प्रसन्न मुख से वसुदेव के पैरों पर गिर पड़ी और बोली : “स्वामी आपका मंगल हो । स्वयं अक्षतशरीर रहकर आपने मुझे हाथी के मुँह से बचा लिया।” उसके बाद कुछ सोचकर बालिका ने अपनी चादर वसुदेव को दे दी और वसुदेव की दी हुई अँगूठी स्वयं उसने ले ली।
संघदासगणी की कथारूढियों की विशेषता यह है कि ये केवल कथारूढि के उपादानों का ही संकेत नहीं करतीं, अपितु उनके विवरण की विशदता में गहरे पैठती हैं, साथ ही कथा में भावी घटनाओं के प्रति उत्सुकता भी जगा देती हैं। जैसे : प्रस्तुत रूढकथा में कथाकार ने मत्त हाथी के आक्रमण से बालिका को बचाने की बात तो लिखी ही है, साथ ही हाथी को वश करने की विद्या के कई सूत्रों की भी चर्चा की है और चादर तथा अँगूठी की अदला-बदली से भावी रोमांस की घटना की सूचना भी दी है। इस प्रकार, संश्लिष्ट कथारूढियों के कुशल प्रयोक्ता संघदासगणी ने हस्तिविद्या के विशेषज्ञों के लिए जहाँ शास्त्रीय अध्ययन की सामग्री प्रस्तुत की है, वहाँ रोमांस की प्रमुख वस्तु रत्यात्मक प्रेमभावना के साथ ही वीरता के आदशीकरण के पक्ष को भी उजागर किया है। इसके अतिरिक्त, इस रूढकथा में प्रयुक्त नायक के गुणों से आकृष्ट होकर उसपर नायिका के सहज समर्पित हो जाने की पारम्परिक कथारूढि या अभिप्राय की सहज सुन्दरता मन को सहसा अभिभूत कर लेती है।
१३. पुत्री के साथ पिता का यौन सम्बन्ध (बन्धुमती-लम्भ : पृ. २७५)
पोतनपुर में दक्ष नाम का राजा था। उसकी भद्रा नाम की रानी से मृगावती नाम की पुत्री उत्पन्न हुई। मृगावती जब युवती हो गई, तब उसकी मदविह्वल आँखों को देखकर उसका पिता दक्ष कामातुर हो उठा और उसने अपनी उस पुत्री से पत्नी बनकर सम्पूर्ण राजकोष की अधिकारिणी होने का आग्रह किया। लेकिन, पुत्री ने पिता के काम-प्रस्ताव को पाप कहकर ठुकरा दिया। तब, दक्ष ने महापण्डित हरिश्मश्रु के मत को उद्धृत करते हुए कहा कि देह से भिन्न कोई जीव नहीं है। तुम राज्यलक्ष्मी की अवमानना मत करो। इसके बाद वह बालिका अपने पिता की शृंगारपूर्ण मीठी बातों से फुसलावे में आ गई और राजा दक्ष अपनी पुत्री के साथ विषय-सुख का अनुभव करता हुआ विहार करने लगा। राजा दक्ष ने प्रजा (बेटी) को (पत्नी के रूप में) स्वीकार कर लिया, इसलिए वह 'दक्ष प्रजापति' कहलाने लगा।
प्रस्तुत रूढकथा में पुराण की प्रसिद्ध कथा को नया मूल्य तो दिया ही गया है, पाप-पुण्य की भावना का भी निषेध किया गया है । इसके अतिरिक्त, पुत्री के साथ पिता के यौन सम्बन्ध की सामाजिक अस्वीकृति के बावजूद कामलिप्सा की स्वार्थसिद्धि के लिए शास्त्र की अपने मनोनुकूल भूतचैतन्यवादी व्याख्या करने की वक्रजड़ता तथा राजा की निरंकुशता की ओर भी कथाकार ने संकेत किया है । अथच, इस कथा से, स्त्री के, धन के लोभ से पुरुष के बहकावे में आकर उसके साथ यौन सम्बन्ध स्थापित कर लेने की मानसिक दुर्बलता भी अपनी पूरी तीव्रता के साथ उद्भावित