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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा
इस रूढकथा में ओषधि के परीक्षण के बाद उसके प्रयोग की चर्चा की गई है। इसी प्रकार, संघदासगणी ने ओषधि प्रयोग द्वारा घोड़े के शरीर से शल्य निकालने की कथा (धम्मिल्लचरित : पृ. ५३) कही है। ओषधि-प्रयोग की यह विधि आयुर्वेद के शास्त्रीय ग्रन्थों में भी मिले, यह आवश्यक नहीं है । यह कवि की कल्पना और ग्रामीण वैद्यों की परम्परागत चिकित्सा-प्रणाली का विचित्र मिश्रण है ।
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संघदासगणी ने ओषधि के प्रभाव से लड़की के लिंग परिवर्तन की भी कथा (पुण्ड्रालम्भ : पृ. २१५) लिखी है । चमरचंचा नगरी के राजा पवनवेग की पुत्री चित्रवेगा थी । बचपन में ही उसकी जाँघ को चीरकर उसमें ओषधि भर दी गई। लड़की क्रमशः बड़ी होने लगी। उस ओषधि के प्रभाव से लोग उसे लड़का समझते थे। जब वह जवान हुई, तब धाई ने उसे इस रहस्य को बता दिया । उसे लड़के के रूप में तबतक प्रच्छन्न रखने का विचार किया गया था, जबतक विवाह निमित्त किसी श्रेष्ठ पुरुष की उपलब्धि नहीं होती। लड़के के रूप में भी वह पर्याप्त आकर्षक । एक बार, जिनोत्सव के समय, मन्दर शिखर पर विद्याधर गरुडवेग ने उसे देख लिया और लड़की समझकर विवाह-सम्बन्ध के निमित्त संवाद - पर संवाद भेजना शुरू किया। जब उस लड़की का वाग्दान हो गया, तब उसकी जाँघ से ओषधि निकाल दी गई और फिर संरोहणी ओषधि के प्रभाव से उसका चीरे का घाव भर गया और वह यथावत् पूर्ण युवा लड़की के रूप में परिवर्त्तित हो गई। इसके बाद उसका बड़े ठाट-बाट से विवाह हुआ ।
प्राचीन कथा-साहित्य में, वैज्ञानिक शल्यचिकित्सा पद्धति से ओषधि-प्रयोग की इस कथारू की द्वितीयता कदाचित् नहीं है । संघदासगणी ने जगह-जगह शल्यचिकित्सा पद्धति का उल्लेख करके वैज्ञानिक कथारूढि की नवीन परम्परा का सूत्रपात किया है । ब्राह्मणों के पुराणों में जहु ऋषि द्वारा अपनी जाँघ चीरकर उसमें गंगा (जाह्नवी) को रख लेने की मिथक कथा अवश्य आई है, किन्तु संघदासगणी के युग में इतने अधिक विकसित और विशद रूप से प्रस्तुत की गई शल्य-चिकित्सा-विज्ञान की चमत्कारी वार्त्ता या जाँघ चीरकर और उसमें ओषधि भरकर लड़की के लिंग को परिवर्तित करने की घटना की कल्पना सर्वथा विस्मयजनक है और आधुनिक शल्यचिकित्सा के ततोऽधिक विकास के युग में भी इस तरह की घटना बहुत कम हुआ करती है, और होने पर अखबारों की सुर्खियों का विषय बनती है !
बुधस्वामी ने भी अपनी महत्कथाकृति 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' की प्रियदर्शना - कथा (सर्ग २७) में ओषधियुक्त सोने के तावीज के प्रभाव से लड़की प्रियदर्शना के लिंग परिवर्तन की कथारूढ का प्रयोग किया है।
१२. मत्त हाथी के आक्रमण से बालिका का उद्धार (सोमश्री - लम्भ: पृ. २२१)
वसुदेव जब महापुर नगर में भ्रमण कर रहे थे, तभी नगर को रौंदता हुआ एक मतवाला हाथी (विद्युन्मुख आया और उसने, इन्द्रध्वज की पूजा देखकर रथ पर लौटती हुई युवतियों में से एक युवती बालिका को अपनी सूँड़ से रथ से बाहर खींच लिया । वसुदेव ने बालिका को आश्वस्त करते हुए पीछे से हाथी पर धावा बोल दिया और उसे वह सिंहावलि, दन्तावलि, गात्रलीन, शार्दूललंघन, पुच्छग्रहण आदि हाथी खेलाने की विभिन्न प्रक्रियाओं से जल्दी-जल्दी घुमा-फि