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________________ १२२ . वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा वसन्ततिलका गणिका की माता वसन्तसेना ने धम्मिल्ल को योगमद्य पिलाकर अचेत कर दिया और फिर उसे अधनंगी हालत में नगर से बाहर दूर ले जाकर छोड़ दिया गया। किन्तु, वसन्ततिलका दरिद्र धम्मिल्ल को पति के रूप में स्वीकार कर चुकी थी, इसलिए उसने प्रतिज्ञा की : “अपने स्वामी के प्रति सत्प्रतिज्ञ मैं अपनी वेणी बाँधती हूँ, यह मानकर कि मेरा वह प्रियतम ही आकर इसे खोलेगा।" इस कथा में गणिका द्वारा दरिद्र नायक का स्वीकार और गणिका-माता द्वारा उसका तिरस्कार तो हुआ ही है, साथ ही वेश्या के फन्दे में पड़े हुए पुत्र के लिए माता-पिता का स्वयं अर्जित शोक तथा समधिनों के झगड़े की कथारूढियाँ भी चित्रित हुई हैं। ३. दुःख के कारण आत्महत्या की विफल चेष्टा (धम्मिल्लचरित : पृ. ३३-३४) वेश्या की माता द्वारा तिरस्कृत धम्मिल रात-भर नगर के बाहर पड़ा रहा। होश में आने पर जब वह अपने घर पहुँचा, तब उसे सारी वस्तुस्थिति का ज्ञान हुआ। वेश्याओं की क्षणिक प्रीति, पुत्र-वियोग से माता-पिता की मृत्यु, पत्नी का घर-द्वार बेचकर नैहर चला जाना आदि बातें उसके मन-मस्तिष्क को मथने लगीं। अन्त में प्राणत्याग करने के विचार से वह एक जीर्ण उद्यान में पहुँचा। वहाँ उसे एक तलवार मिल गई और उसी से वह आत्मवध के लिए तैयार हो गया। किन्तु, उसी समय किसी देव ने झटककर तलवार को उसके हाथ से नीचे गिरा दिया। तब, उसने लकड़ी एकत्र करके आग लगा दी और उसी में प्रवेश कर गया। किन्तु वह अग्निपुंज महाह्रद के समान शीतल हो गया। उसके बाद उसने विष खा लिया, लेकिन वह भी, सूखी घास की तरह, उसकी जठराग्नि में जल गया। तब, वह प्राणत्याग के लिए पेड़ की फुनगी से कूद पड़ा, किन्तु कठोर धरती भी उसके लिए रूई का ढेर साबित हुई। इसी समय उसे आकाशवाणी सुनाई पड़ी : “साहस मत करो, साहस मत करो।" तब उसने दीर्घ नि:श्वास लेकर कहा कि “लगता है, मेरा मरण नहीं लिखा है", और फिर सोचता-विचारता हुआ बैठा रहा। - इस रूढकथा में दुःख के कारण आत्महत्या की विफल चेष्टा का चित्रण तो हुआ ही है, किसी अज्ञात-अरूप देव के द्वारा तलवार को हाथ से झटक देना, आग का जल की तरह शीतल हो जाना, विष का भी पेट में पच जाना, धरती की कठोरता का रूई की कोमलता में परिणत हो जाना और आकाशवाणी द्वारा मृत्यु से विमुख होने की चेतावनी मिलना आदि कई चमत्कारी कथानक रूढियों का युगपत् समाहार हुआ है। ४. विद्याभ्यासी छात्र द्वारा सुन्दरी का अपहरण (अगडदत्त मुनि की आत्मकथा : पृ. ३५-३६ और ४१-४२) 'वसुदेवहिण्डी' में धम्मिल्लहिण्डी के अन्तर्गत चित्रित अगडदत्त की आत्मकथा भी मनोरंजक और चमत्कारी रूढिकथाओं से व्याप्त है। अगडदत्त, अवन्ती के राजा जितशत्रु के नीतिनिपुण सारथी अमोघरथ का पुत्र था। अगडदत्त जब छोटा बालक था, तभी भवितव्यतावश उसका पिता मर गया। अमोघरथ की जगह राजा ने अमोघप्रहारी नाम का दूसरा सारथी नियुक्त किया। अगडदत्त की माँ को यह सहन नहीं हुआ और उसने पुत्र से कहा, यदि तुम योग्य होते, तो अपने पिता की
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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