________________
वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
१२३ जगह नियुक्त होते । अन्त में, अगडदत्त की माँ ने उसे उसके पिता के मित्र कौशाम्बीवासी दृढप्रहारी के पास अस्त्र-शस्त्र की कला सीखने को भेज दिया।
___ छात्र के रूप में अगडदत्त, जिस समय एकान्त में, अस्त्र-शस्त्र का अभ्यास करता, उसी समय पड़ोस के ही यक्षदत्त की लड़की श्यामदत्ता उसे अपनी ओर आकृष्ट करने के निमित्त फूल आदि फेंककर मारती । अन्त में, दोनों में प्रगाढ प्रेम हो गया। और, अगडदत्त जब अस्त्र-शस्त्र की विद्या में निपुण हो गया, तब एक दिन उज्जयिनी लौटते समय उसने श्यामदत्ता को भी अपने रथ पर बैठा लिया। उज्जयिनी पहुँचकर उसने राजा जितशत्रु से भेंट की और अपना परिचय दिया । राजाने उसे उसके पिता के पद पर नियुक्त कर लिया।
इस रूढकथा में विद्याभ्यासी छात्र द्वारा, उसकी ओर आकृष्ट सुन्दरी के अपहरण की रूढि के अतिरिक्त, पति के मर जाने के बाद उसके पद पर दूसरे पुरुष की नियुक्ति को विधवा द्वारा सहन न कर पाने और प्रतिस्पर्धावश इसके प्रतिकार के लिए पुत्र को पिता के तुल्य योग्य बनाने की उसकी सहज चिन्ता का उद्भावन, कामुक युवती का युवक को अपनी ओर आकृष्ट करने का प्रयास एवं बलपूर्वक सुन्दरी के अपहरण की परम्परागत कथारूढियों का भी आवर्जक निदर्शन प्रस्तुत हुआ है।
५. सतीत्व-रक्षा के लिए शीलवती स्त्री द्वारा कामुक पुरुष का वध (धम्मिल्लहिण्डी : धनश्रीकथा : पृ. ४९)
उज्जयिनी के व्यापारी सागरचन्द्र का विद्याभ्यासी पुत्र समुद्रदत्त एक दिन स्लेट रखने घर के भीतर गया। वहाँ उसने अपनी माँ को किसी परिव्राजक के साथ रमण करते देख लिया। उसी समय से उसे स्त्रीजाति के प्रति विराग हो आया और उसने विवाह न करने का निश्चय कर लिया। किन्तु, पिता सागरचन्द्र ने छलपूर्वक सौराष्ट्र देश के गिरिनगर के निवासी सार्थवाह धन की पुत्री धनश्री से उसका विवाह करा दिया। परन्तु, सागरदत्त सोहागरात में धनश्री को चकमा देकर घर से भाग निकला। बहुत दिनों तक वह इधर-उधर भटकता रहा और अन्त में एक दिन नख, केश
और दाढी बढ़ाये भिखमंगे के वेश में गिरिनगर लौट आया और धन सार्थवाह के उद्यान में माली का काम करने लगा। माली के रूप में उसने उद्यान को सजा-सँवारकर फूल-फल से समृद्ध बना दिया। इससे प्रसन्न होकर धन सार्थवाह ने उसे स्नान कराया और कपड़े पहनने को दिये। इसके बाद उसे माली के काम से मक्त कर दकान की देखभाल करने का काम दिया। वह (समुद्रदत्त) आय-व्यय में तथा इत्र तैयार करने में कुशल था। धीरे-धीरे वह नगर का एक विश्वसनीय व्यक्ति हो गया। इसके बाद वह धन सार्थवाह के भाण्डार का प्रभारी बन गया और 'विनीतक' नाम से अपने को प्रसिद्ध किया।
गिरिनगर का एक आरक्षी-पदाधिकारी (डिण्डी) धनश्री के रूप-यौवन से कामाहत हो उठा और विनीतक के जरिये उसे प्राप्त करने की चेष्टा की । धनश्री ने विनीतक द्वारा आरक्षी-पदाधिकारी को अपने 'अशोकवन' उद्यान में बुलवाया और उसे योगमद्य पिलाकर बेहोश कर दिया। उसके बाद उसने उसीकी तलवार से उसका सिर काट डाला। धनश्री के निर्देश से विनीतक ने कुआँ खोदकर आरक्षी-पदाधिकारी के शव को उसमें डाल दिया।