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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
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उपर्युक्त समस्त लक्षणों के निकष पर रखकर 'वसुदेवहिण्डी' की रूढिकथाओं को परखा जाय, तो स्पष्ट होगा कि संघदासगणी की इस बृहत्कथाकृति में, परस्पर बहुशः साम्य रखनेवाले कथाप्रकारों, जैसे प्रेमाख्यान, प्रेमकथा, मसनवी और रोमांस के ललित तत्त्वों का एक साथ अद्भुत समाकलन उपन्यस्त हुआ है ।
अब यहाँ स्वतन्त्र रूप से, निदर्शन- मात्र के लिए 'वसुदेवहिण्डी' की कतिपय रूढिकथाओं का विवेचन प्रसंगोपेत होगा
१. विद्या या जादू जाननेवाले कलावन्त चोर और गृहस्वामी की कथा (कथोत्पत्ति : पृ. ७)
जयपुरवासी राजा विन्ध्यराज का ज्येष्ठ पुत्र प्रभव बड़ा अभिमानी और कलावन्त था । अपने छोटे भाई प्रभु को राज्य मिल जाने से उसका अभिमान आहत हो उठा । उसने विन्ध्यगिरि की तराई में जाकर अपना पड़ाव डाला और चौर्यवृत्ति से वह अपना जीवन निर्वाह करने लगा । प्रभव ने राजगृहनिवासी जम्बू के नाम और वैभव तथा उसके विवाहोत्सव में सम्मिलित लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त की और चोरभटों के साथ तालोद्घाटिनी विद्या से किवाड़ी खोलकर जम्बू के घर में घुस गया। वहाँ के लोगों को 'अवस्वापिनी' विद्या से सुलाकर चोरों ने वस्त्र और आभूषण चुराना शुरू किया।
गृहस्वामी जम्बू 'स्तम्भिनी' और 'मोचनी' ये दो विद्याएँ जानता था । उसने विना किसी घबराहट के चोरों से कहा : " आमन्त्रित आगतों को मत छुओ ।” जम्बू के बोलते ही वे चित्रलिखित यक्ष की भाँति स्तम्भित होकर निश्चेष्ट रह गये। बाद में, जम्बू ने 'मोचनी' विद्या द्वारा चोरों को मुक्त कर दिया और प्रभव ने श्रामण्य-दीक्षा ग्रहण कर ली ।
चोरों द्वारा ' अवस्वापिनी' विद्या के प्रयोग की कथारूढि भारत में दीर्घकाल से प्रचलित है । इस प्रकार की कथा भारतीय कथा - साहित्य में भूयश: आवृत्त हुई है। लोक-विश्वास होने के कारण यह लोकरूढि भी है ।
२. गणिका द्वारा दरिद्र नायक का स्वीकार और गणिका-माता द्वारा तिरस्कार ( धम्मिल्लचरित : पृ. २८)
कुशाग्रपुर के सार्थवाह सुरेन्द्रदत्त का पुत्र धम्मिल्ल अपनी पत्नी की ओर से विमुख रहकर केवल शास्त्र के अनुशीलन में ही समय बिताता था । इससे धम्मिल्ल के माता-पिता बहुत चिन्तित रहते थे । इस बात पर धम्मिल्ल की माँ सुभद्रा और धम्मिल्ल की सास धनदत्ता, अर्थात् दोनों समधिनों में खूब कसकर झड़प भी हो गई । अन्त में सुभद्रा ने अपने बेटे को, 'उपभोगरतिविचक्षण' बनाने के निमित्त, उसे वसन्तसेना नाम की वेश्या की पुत्री वसन्ततिलका की 'ललित गोष्ठी' में भरती करा दिया और प्रशिक्षण - शुल्कस्वरूप आधा सहस्र स्वर्णमुद्रा प्रतिदिन वह भिजवाने लगी । धम्मिल्ल वसन्ततिलका के अनुराग में पूर्णत: लिप्त हो गया। धम्मिल्ल के भविष्य निर्माण में उसके माता-पिता की सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई, फिर भी धम्मिल्ल वसन्ततिलका के प्रेमपाश से अपने को मुक्त नहीं कर सका । धम्मिल्ल के माता-पिता वेश्यासक्त पुत्र के सन्ताप में घुल-घुलकर मर गये और धम्मिल्ल की पत्नी यशोमती भी अपना घर बेचकर पिता के घर चली गई। एक दिन,