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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा बुधस्वामी के 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' और संघदासगणी की 'वसुदेवहिण्डी' और तदुत्तरवर्ती अनेक संस्कृत-हिन्दी- प्रेमाख्यानों में प्राप्त होता है। इसलिए, हिन्दी के प्रेमाख्यानों को फारसी - प्रेमाख्यानों पर आधृत मानना तर्कसंगत नहीं। डॉ. सुशीलकुमार फुल्ल ठीक ही लिखते हैं कि वास्तव में हेरोदोतस एवं हिकेतियस नामक ग्रीक-लेखकों की रचनाओं में इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि ई.पू. छठी शती तक भारतीय कथाएँ मध्य एशिया से होती हुई यूनान तक पहुँच चुकी थीं तथा वहाँ से होती हुई ये कथाएँ क्रमश: समस्त यूरोप में व्याप्त हो गईं। ' १२० प्रेमाख्यान या प्रेमकथा ही रूढिकथाओं की जन्मभूमि है। इसलिए, रूढिकथाओं का सम्बन्ध स्वभावत: 'रोमांस' से जुड़ जाता है। पाश्चात्य विद्वानों ने 'रोमांस' पर बड़ी सघनता और सुश्लिष्टता से विचार किया है जिनमें जॉर्ज बेटमैन सेण्ट्सबरी ('इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, सन् १९६५ ई., खण्ड १९, पृ. ४३८–४४०); डब्ल्यू. पी. केर ('एपिक ऐण्ड रोमांस', सन् १९५७ ई., पृ.४); आर. एस्. लूमिस तथा एल्. एच्. लूमिस ('मेडिएवल रोमांसेज', सन् १९५७ ई, प्रस्तावना, पृ. १०); ए. सी. गिब्स ('मिड्ल इंगलिश रोमांस', सन् १९६६ ई., पृ. ७); डब्ल्यू. एच्. हडसन ('एन् इण्ट्रोडक्शन टु दि स्टडी ऑव लिट्रेचर, सन् १९६७ ई., पृ. १०८), जोजेफ टी. शिप्ले ('इन्साइक्लोपीडिया ऑव लिट्रेचर, सन् १९४६ ई, खण्ड १, पृ. २११), एल. मेरी बार्कर ('पीयर्स साइक्लोपीडिया', सन् १९६८, ६९ ई., पृ. एम्-२); अर्नेस्ट ए. बेकर ('दि हिस्ट्री ऑव इंगलिश नावेल', खण्ड १, पृ. ५५), आयनवाट ('इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, खण्ड १६, पृ. ६७६ ) आदि के नाम उल्लेख्य हैं। २ 'रोमांस' की यथाप्राप्य परिभाषाओं या आदर्शों के अनुसार, निष्कर्ष रूप में, उसके विषय और शिल्पगत सामान्य लक्षणों के बारे में कहा जा सकता है कि 'रोमांस' का कथानक विदेशज, अर्थात् दूरस्थ देश या स्थान अथवा दूरस्थ विगत या अतीत की पृष्ठभूमि पर आधृत होता है । इसमें खोज का अभिप्राय या रूढियाँ निश्चित रूप से रहती हैं। यह खोज प्रेमिका या किसी अन्य वस्तु की हो सकती है। 'रोमांस' का नायक शूरवीर रहता है और उसके साहसिक पराक्रमों तथा भावुक प्रेम का चित्रण किया जाता है। इसमें काल्पनिक तथा पराप्राकृतिक तत्त्वों का समावेश रहता है । कथा के विकास की अपेक्षा उसके प्रवर्द्धन या लम्बा करने की प्रवृत्ति पाई जाती है । इसमें रहस्यात्मकता, कुतूहल तथा स्वैर कल्पना के लिए पर्याप्त अवकाश रहता है । चरित्र-चित्रण की अपेक्षा घटनाओं पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है। इसमें प्रेम, धर्म और शौर्य का प्राय: मिला-जुला रूप रहता है। इसमें विशुद्ध रोमांसप्रधान स्वच्छन्द प्रेम का चित्रण रहता है । ‘रोमांस' का वर्णन-माध्यम गद्य हो सकता है। शृंगारिक प्रेम-व्यापार की प्रमुखता, दुःखद एवं हास्यास्पद घटनाओं का सन्निवेश एवं साहसिक कृत्यों का परिदृश्य के रूप में चित्रण रोमांस के अनिवार्य उपादान हैं । रत्यात्मक प्रेम-सम्बन्धी घटनाओं को अभूतपूर्व स्थान एवं महत्त्व देने का आग्रह, नारी-वर्ग के प्रति रोमाण्टिक श्रद्धा, दरबारी सामाजिक वातावरण, अतीत के साथ ही नैतिक गुणों, क्षात्रधर्मी व्यवहार एवं वीरता का आदर्शीकरण आदि 'रोमांस' के प्रथम प्रतिपाद्य विषय हैं । कथा की भाँति रोमांस एवं मसनवी में भी उपकथाओं, अवान्तर कथाओं और अन्तःकथाओं की योजना रहती है। १. द्र. 'परिषद्-पत्रिका', वर्ष १८ : अंक ३, अक्टूबर, १९७८ ई., पृ. ६५
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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