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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
११९ ३८. विद्याध्ययन करते समय छात्र को किसी सुन्दरी द्वारा अपनी ओर आकृष्ट करना और
छात्र द्वारा उसका अपहरण । ३९. बलपूर्वक सुन्दरियों का अपहरण । ४०. माँ, पिता और दादा से पुत्र और पोते का हास-परिहास और उन्हें छकाना । ४१. भाई-भाई में शर्तबन्दी और बाजी जीतना। ४२. सुहागरात में पत्नी को चकमा देना। ४३. निर्जन वन में सुन्दरियों से साक्षात्कार तथा सुन्दरियों के नख-शिख का वर्णन ।
४. आकाशचारी यन्त्र द्वारा आकाशमार्ग से यात्रा। ४५. मुनियों का आकाश में उड़ना। ४६. तपस्या द्वारा मोक्ष की प्राप्ति । ४७. भंजन और गुटका की सिद्धि । ४८. नायक द्वारा अभिभावकों को धोखा देकर उनकी पुत्रियाँ प्राप्त करना । ४९. नापक के गुणों पर नायिकाओं का समर्पित होना। ५०. ओषधि-प्रयोग। ५१. स्त्री का प्रेम-निवेदन और इच्छा पूर्ण न होने पर षड्यन्त्र । ५२. स्वपदर्शन, चित्रदर्शन या कीर्तिवर्णन सुनकर प्रेमासक्त होना । ५३. दृष्टान्तों द्वारा कथावस्तु का विस्तार और स्वीकृत विषयवस्तु का समर्थन । ५४. समुद्र-यात्रा और जलयान का ध्वस्त होकर डूब जाना। ५५. राजा या युवराज के साथ उसके मन्त्रियों की दुरभिसन्धि । ५६. परलोक और धर्मफल में विश्वास।
'वसुदेवहिण्डी' की उपर्युक्त विभिन्न कथानक-रूढियाँ दिग्दर्शन-मात्र के लिए यहाँ प्रस्तुत की गई हैं। 'वसुदेवहिण्डी' में इस प्रकार की कथानक-रूढियों का महाजाल बिछा हुआ है। फलतः, कथानक रूढियों से समृद्ध 'वसुदेवहिण्डी' की रूढिकथाओं में इतिहास-पुराण और कल्पना (फैक्ट
और फिक्शन) का अद्भुत मिश्रण है । इस प्रकार, 'वसुदेवहिण्डी' में संघदासगणी ने कथानक रूढियों से अनुरंजित रूढिकथाओं द्वारा रससृष्टि के लिए सम्भावनाओं और कल्पनाओं के महत्त्व को स्वीकार करने का ततोऽधिक आग्रह प्रदर्शित किया है।
प्राचीन महाकथा 'वसुदेवहिण्डी' की मूल ध्वनि प्रेमाख्यान की ही है। विश्व में प्रेमाख्यानों की सुविकसित एवं सुदीर्घ परम्परा मिलती है। विश्व की प्रमुख भाषाओं के कतिपय प्रतिनिधि प्रेमाख्यानों के अध्ययन और विश्लेषण से विद्वान् आलोचकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि विश्व-भर में प्राप्य प्रेमाख्यान-परम्परा का आदिस्रोत भारत है, यूनान अथवा कोई अन्य देश नहीं। इस दृष्टि से गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' भारतीय प्रेमाख्यान की आदिजननी है और जिसका परवर्ती विकास