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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
के बाद राजा ने एक दूसरी पत्नी को ज्येष्ठा महिषी के पद पर अभिषिक्त किया। उसके भी एक पुत्र (भरतकुमार) उत्पन्न हुआ। राजा ने उसी अवसर पर उस दूसरी रानी को एक वर दिया। जब भरत की अवस्था सात वर्ष की थी, रानी ने अपने पुत्र के लिए राज्य माँगा। राजा ने स्पष्ट इनकार कर दिया, लेकिन जब रानी बार-बार आग्रह-अनुरोध करने लगी, तब राजा ने उसके षड्यन्त्रों के भय से अपने, पूर्वमहिषी से उत्पन्न दोनों पुत्रों (राम और लक्ष्मण) को बुलाकर कहा : “यहाँ रहने से तुम्हारे अनर्थ होने की सम्भावना है। इसलिए किसी अन्य राज्य या वन में जाकर रहो और मेरे मरने के बाद लौटकर राज्य पर अधिकार प्राप्त करो।" ___ज्योतिषियों ने राजा की मृत्यु की अवधि बारह वर्ष के बाद बताई । तब दशरथ ने अपने दोनों पुत्रों से कहा : “हे पुत्रों ! बारह वर्ष के बाद आकर राजच्छत्र को उठाना।” पिता की वन्दना करके दोनों भाई चल पड़े, तो सीता देवी भी पिता से विदा लेकर उनके साथ हो ली। तीनों के साथ बहुत-से अन्य लोग भी चल दिये। किन्तु, उनको लौटाकर दोनों हिमालय पहुँच गये और वहाँ आश्रम बनाकर रहने लगे।
नौ वर्ष के बाद दशरथ पुत्रशोक के कारण मर जाते हैं। दूसरी रानी अपने पुत्र भरत को राजा बनाने में असफल होती है; क्योंकि अमात्य और स्वयं भरत भी इसका विरोध करते रहे । भरत चतुरंगिणी सेना लेकर राम को लौटा लाने के उद्देश्य से वन को चले जाते हैं।
भरत के बहुत अनुरोध करने पर भी रामपण्डित यह कहकर वन में रहने का निश्चय प्रकट करते हैं : “मेरे पिता ने मुझे बारह वर्ष की अवधि के अन्त में राज्य करने का आदेश दिया है। इस समय लौटकर मैं उनकी आज्ञा का पालन न कर सकूँगा। मैं तीन वर्ष के बाद लौट आऊँगा।"
जब भरत भी शासनाधिकार अस्वीकार करते हैं, तब रामपण्डित अपनी तृण की पादुकाएँ देकर कहते हैं : “मेरे वापस आने तक ये पादुकाएँ ही शासन करेंगी।" पादुकाओं को लेकर भरत लक्ष्मण, सीता और अन्य लोगों के साथ वाराणसी लौट आते हैं। अमात्य, राम की पादुकाओं के समक्ष राजकाज का संचालन करते हैं। अन्याय होते ही पादुकाएँ एक दूसरे पर आघात करती हैं और ठीक निर्णय होने पर शान्त रहती हैं।
तीन वर्ष व्यतीत होने पर रामपण्डित लौटकर अपनी बहन सीता से विवाह करते हैं और सोलह हजार वर्ष तक धर्मपूर्वक राज्य करने के बाद वह स्वर्ग चले जाते हैं।
अन्त में, बुद्ध ने कथा का सामंजस्य बैठाते हुए कहा : उस समय महाराज शुद्धोदन महाराज दशरथ थे। महामाया (बुद्ध की माता) राम की माता, यशोधरा (राहुल की माता) सीता, आनन्द भरत थे और मैं रामपण्डित था।
श्रमण-परम्परा के अन्तर्गत, परवर्ती काल में, बौद्धों में रामकथा की लोकप्रियता दिनानुदिन क्षीण होती चली गई। परन्तु जैनों में रामकथा की प्रियता अपभ्रंश-काल तक लौकिक और साहित्यक स्तर पर, समान भाव से समादृत बनी रही। इसीलिए, जैन कथा-वाङ्मय में रामकथासाहित्य अत्यन्त विस्तृत रूप में उपलब्ध होता है। बौद्ध, भगवान् बुद्ध को राम का पुनरवतार मानते हैं। जैनधर्म में भी रामकथा के पात्रों को अतिशय महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। राम या पद्य, लक्ष्मण और रावण न केवल जैनमार्गानुयायी हैं, अपितु ये त्रिषष्टिशलाकापुरुषों में परिगणित हैं। ये शलाकापुरुष हैं : २४ तीर्थंकर (अपने-अपने समय के जैनधर्म के प्रवर्तक एवं उपदेशक),