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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
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पलियों— देववर्णनी, वक्रा, कैकेयी और पुष्पकूटा — में प्रथम देववर्णनी के पुत्रों-सोम, यम, वरुण और वैश्रवण नाम के सौतेले भाइयों— सें विरोध के कारण रामण परिवार सहित लंकाद्वीप में जाकर बस गया है। इसे प्रज्ञप्तिविद्या की सिद्धि प्राप्त
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सीता को रामण की पत्नी, मय विद्याधर की पुत्री मन्दोदरी की प्रथम पुत्री के रूप में उपस्थि किया गया है। लक्षणवेत्ताओं ने मन्दोदरी की प्रथम पुत्री को कुलक्षय का कारण बताया था, इसलिए उसने अपने मन्त्रियों को, अपनी प्रथम पुत्री को, जन्म लेते ही, रत्नमंजूषा में रखकर कहीं छोड़ आने का आदेश दिया । मन्त्रियों ने तिरस्करिणी विद्या से अपने को प्रच्छन्न रखकर मिथिला
राजा जनक की उद्यानभूमि की सजावट के समय, हल की नोंक के आगे डाल दिया था। जमीन जोतते समय जब वह कन्या प्राप्त हुई, तब राजा जनक ने उसे धरती की अधिष्ठात्री देवी धारणी से प्राप्त प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। उसी बालिका का नाम 'सीता' रखा गया । यद्यपि, संघदासगणी ने यहाँ 'सीता' शब्द की व्युत्पत्ति पर कोई विचार नहीं किया है । रामण अपनी इसी पुत्री सीता के रूप से काममोहित होकर इसका अपहरण करता है ।
ब्राह्मण-परम्परा की रामकथा में लक्ष्मण और शत्रुघ्न को राजा दशरथ की तीसरी रानी सुमित्रा से उत्पन्न बताया गया है, किन्तु संघदासगणी ने भरत और शत्रुघ्न को कैकेयी के पुत्र कहा है । बाली और सुग्रीव विद्याधरकुल के सदस्य हैं और हनुमान् तथा जाम्बवान् सुग्रीव के मन्त्री बताये गये हैं । लंका - विजय तथा रावण के शव - संस्कार के बाद राम ने विभीषण को अरिंजयपुर में राज्याभिषिक्त किया है और सुग्रीव को विद्याधर- श्रेणी के नगर में । राम की अपेक्षा लक्ष्मण के हाथों रावण का वध दिखाया गया है। रावण शिव की उपासना की जगह ज्वालवती विद्या की साधना करता है । रावण से युद्ध के समय भरत ने राम की सहायता के लिए चतुरंग सेना भेजी थी । इस प्रकार के थोड़े-बहुत अन्तर के साथ शेष कथा ब्राह्मण- परम्परावत् ही है ।
बौद्ध रामकथा से जैन रामकथा सर्वथा भिन्न है । प्राचीन बौद्ध साहित्य में रामकथा-सम्बन्धी तीन जातक (‘दशरथजातक', 'अनामकजातक' और 'दशरथकथानम् ) सुरक्षित हैं, जिनमें बुद्ध राम का रूप धारण करते हैं। इन तीनों जातकों में 'दशरथजातक' सर्वाधिक प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण है । जातक ऐसी कथा है, जिसमें भगवान् बुद्ध अपने असंख्य पूर्वजन्मों में मनुष्य अथवा पशु के रूप में आते हैं । बुद्ध ने जैतवन में 'दशरथजातक' की कथा कही थी। किसी गृहस्थ का पिता मर गया था। फलतः, वह शोकाभिभूत होकर अपना सारा लौकिक कर्त्तव्य छोड़ बैठा । यह जानकर बुद्ध ने उससे कहा कि प्राचीन काल के पण्डित अपने पिता की मृत्यु पर तनिक भी श नहीं करते थे। इसके बाद दशरथ की मृत्यु पर राम के धैर्य का उदाहरण देने के लिए बुद्ध ने उस गृहस्थ को दशरथजातक सुनाया । संक्षिप्त रूप में कथा इस प्रकार है :
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राजा दशरथ वाराणसी में धर्मपूर्वक राज्य करते थे । इनकी ज्येष्ठा महिषी के तीन सन्तानें थीं : दो पुत्र (रामपण्डित और लक्ष्मण) और एक पुत्री (सीता देवी) । इस महिषी के मरने
१. महाभारत के रामोपाख्यान से यह प्रसंग तुलनीय है । द्रौपदी के हरण तथा उसको पुनः प्राप्त करने के बाद युधिष्ठिर अपने दुर्भाग्य पर शोक प्रकट करते हैं। इसपर मार्कण्डेयजी राम का उदाहरण देकर युधिष्ठिर को धैर्य बँधाने का प्रयत्न करते हैं। युधिष्ठिर के रामचरित सुनने की इच्छा प्रकट करने पर मार्कण्डेयजी रामोपाख्यान सुनाते हैं। यह रामोपाख्यान वाल्मीकि कृत रामायण का स्वतन्त्र संक्षिप्त रूप है।