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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
धारिणी देवी ने कृपा करके उन्हें यह पुत्री प्रदान की है। वह बालिका (सीता) अपने रूप से देवताओं को भी मुग्ध कर लेती थी। जनक ने सीता के स्वयंवर का आदेश दिया। स्वयंवर में आये अनेक राजकुमारों में सीता ने राम का वरण किया। दशरथ के शेष तीनों पुत्रों के लिए भी जनक ने लड़कियाँ दीं और विपुल धन-सम्पत्ति भी प्रदान की। सबको लेकर राजा दशरथ अपने नगर लौट गये 1
स्वजनोपचार में विचक्षण कैकेयी की सेवा से सन्तुष्ट होकर राजा दशरथ ने उससे वर माँगने को कहा । " वरदान सुरक्षित रहे । काम पड़ने पर माँग लूँगी।” कैकेयी बोली । राजा दशरथ का सीमावर्ती राजा के साथ विरोध चल रहा था । उसने युद्ध में राजा दशरथ को बन्दी बना लिया । दशरथ के मन्त्रियों ने प्राणरक्षा के निमित्त जब कैकेयी से भाग जाने को कहा, तब उस क्षत्रियाणी का स्वाभिमान उत्तेजित हो उठा। वह अस्त्र-शस्त्र से सज्जित हुई, तने हुए छत्रवाले रथ पर सवार होकर प्रतिपक्षी राजा से भयंकर युद्ध करने लगी और पीठ दिखानेवाले अपने सैनिकों को मृत्युदण्ड देने का आदेश उसने प्रचारित किया। अन्त में, उसने शत्रु राजा को परास्त कर राजा दशरथ को बन्धन से मुक्त करा लिया। तब दशरथ ने कैकेयी से कहा: “देवी! तुमने श्रेष्ठ पुरुष की भाँति काम कर दिखाया है, वर माँगो ।” कैकेयी बोली : “मेरे लिए यह दूसरा वरदान भी सुरक्षित रहे । काम पड़ने पर माँग लूँगी । "
अनेक वर्ष बीत गये । राजा दशरथ के सभी पुत्र पूर्णत: युवा हो गये और वह स्वयं वृद्धावस्था को प्राप्त हुए। फलतः, उन्होंने राम के अभिषेक का आदेश दिया। अभिषेक की तैयारी पूरी हो इधर, बड़ी मन्थरा के बहकाने पर रानी कैकेयी कुपित होकर कोपघर में चली गई। राजा ने जब बहुत अनुनय-विनय किया, और वर माँगने की बात कही, तब कैकेयी परितोष से प्रफुल्ल होकर बोली : " एक वर से भरत राजा बने और दूसरे वर से राम बारह वर्षों तक वन में रहे ।” इसपर दशरथ ने कैकेयी को अनेक प्रकार से मीठा-कड़वा सुनाया और राम को बुलवाकर अश्रुपूरित कण्ठ से कहा: “पूर्वप्रदत्त वर के अनुसार कैकेयी भरत के लिए राज्य और तुम्हारे लिए वनवास माँगती है । मेरा वरदान झूठा न हो, वैसा ही करो ।” राम वीरवेश धारण कर लक्ष्मण और के साथ, जंगल चले गये और दशरथ उनके वियोग में विलाप करते हुए मर गये ।
अपने मामा के देश से वापस आने पर भरत को जब वस्तुस्थिति का पता चला, तब उन्होंने अपनी माँ को बहुत कोसा और बन्धु बान्धव- सहित राम के पास गये । भरत से पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर राम ने दिवंगत पिता के लिए प्रेतकृत्य सम्पन्न किया। उसके बाद अश्रुपूर्णमुखी भरत की माँ कैकेयी ने राम से कहा: “तुमने पिता की बात पूरी कर दी । अब मुझे कलंक के पंक से उद्धार करने के लिए कुलक्रमागत राज्यलक्ष्मी और भाइयों का परिपालन करो।” किन्तु, राम ने कैकेयी से इस प्रकार के अनुबन्धन में न डालने का आग्रह किया । अन्त में, राम की खड़ाऊँ लेकर सपरिवार भरत अयोध्या लौट आये ।
सीता और लक्ष्मण के साथ राम तपस्वियों के आश्रम देखते और दक्षिण दिशां का अवलोकन करते हुए विजन स्थान में पहुँचे। राम के रूप को देखकर काममोहित हो रामण की बहन शूर्पणखी वहाँ आई | राम ने उसका तिरस्कार किया और सीता ने भर्त्सना के स्वर में कहा: “न चाहनेवाले परपुरुष की बलात् प्रार्थना करके मर्यादा का अतिक्रमण करती हो !”