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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
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'वसुदेवहिण्डी' के लेखक आचार्य संघदासगणी रामकथा की महत्ता से परिचित थे और वसुदेव के पर्यटन का वृत्तान्त लिख रहे थे, ऐसी स्थिति में राम जैसे महान् पर्यटनकारी की कथा 'रामायण' (राम + अयन = राम का परिभ्रमण) का अपने युगान्तरकारी कथाग्रन्थ में समावेश कैसे नहीं करते ? ब्राह्मण-परम्परा के, रामायण, महाभारत और बृहत्कथाश्लोकसंग्रह — इन तीनों भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि महाकाव्यों की कथासामग्री को आत्मसात् करके संघदासगणी ने अपनी कथाकृति को भारतीय सांस्कृतिक गरिमा का संवहन करनेवाला बृहद् ग्रन्थ बना दिया है ।
प्रचलित रामकथा को आत्मसात् करके संघदासगणी ने अपने कथाग्रन्थ में जिस रूप में रखा है, वह सामान्य पाठकों के लिए नातिपरिचित होते हुए भी मूल कथातत्त्व की दृष्टि से सुपरिचित ही है । रामकथा की व्यापकता के बावजूद, संघदासगणी कृष्णकथा के प्रति जितना अधिक रीझे हैं, रामकथा में उतना अधिक नहीं रमे हैं। उनके द्वारा उपन्यस्त रामायण (रामकथा) का सार यहाँ प्रस्तुत है :
राजा मेघनाद के वंशज राजा बली के वंश में सहस्रग्रीव राजा हुआ । उसकी वंश-परम्परा में क्रमश: पंचशतग्रीव, शतग्रीव, पंचाशद्ग्रीव, विंशतिग्रीव और दशग्रीव राजा हुए। दशग्रीव ही रामण (रावण) के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा विंशतिग्रीव के चार पलियाँ थीं : देववर्णनी, वक्रा, कैकेयी और पुष्पकूटा । देववर्णनी के चार पुत्र थे : सोम, यम, वरुण और वैश्रवण । कैकेयी के तीन पुत्र थे : रामण, कुम्भकर्ण और विभीषण तथा दो पुत्रियाँ थीं : त्रिजटा और शूर्पणखी । वक्रा - के महोदर, महार्थ, महापाश और खर ये चार पुत्र थे और आशालिका नाम की पुत्री थी। इसी प्रकार, पुष्पकूटा के तीन पुत्र थे : त्रिसार, द्विसार और विद्युज्जिह्न और एक पुत्री थी कुम्भिनासा ।
देववर्णनी के पुत्र सोम, यम आदि के विरोध के कारण, रामण अपने परिवार के साथ लंकाद्वीप में जाकर बस गया। उसने वहाँ रहकर प्रज्ञप्तिविद्या सिद्ध की। फलतः, विद्याधर- सामन्त उसके वशवर्त्ती हो गये । रामण के प्रशासनिक प्रभाव से लंकापुरी में स्थिरता आ गई। स्वयं विद्याधर लंकावासियों की सेवा करते
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एक दिन मय नाम का विद्याधर अपनी पुत्री मन्दोदरी को साथ लेकर रामण की सेवा में उपस्थित हुआ । मन्दोदरी के विषय में लक्षणवेत्ताओं ने बतया था कि इसकी पहली सन्तान कुलक्षय का कारण बनेगी । फिर भी, अतिशय रूपवती होने के कारण मन्दोदरी का परित्याग रामण ने नहीं किया और उससे विवाह करके उसे अपनी पटरानी बना लिया ।
इधर, अयोध्यानगरी में राजा दशरथ रहते थे। उनके तीन रानियाँ थीं : कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा | कौशल्या के पुत्र राम हुए, सुमित्रा के लक्ष्मण और कैकेयी के भरत और शत्रुघ्न । ये चारों पुत्र देवता के समान रूपवान् थे I
रामण की प्रधान महिषी मन्दोदरी ने जब प्रथम पुत्री का प्रसव किया, तब कुलक्षय की आशंका से उसने उसे रत्न से भरी मंजूंषा में रखकर मन्त्रियों से कहीं छोड़ आने का आदेश दिया। उस समय मिथिला के राजा जनक की उद्यानभूमि को जोत- कोड़कर उसकी सजावट की जा रही थी। मन्दोदरी के मन्त्रियों ने जनक की उद्यान भूमि में पहुँचकर तिरस्करणी विद्या द्वारा अपने को प्रच्छन्न रखकर रत्नमंजूषा को हल की नोंक के आगे रख दिया । उद्यानभूमि की जुताई के समय हल की नोंक के आगे कन्या मिलने की सूचना राजा जनक को दी गई । जनक ने समझा,