SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ १०५ सीता की बात पर रुष्ट होकर शूर्पणखी अपने भयंकर रूप में आकर सीता को डराने लगी। तब, राम ने स्त्री को अवध्य मानकर केवल उसके नाक-कान काट लिये। इसपर शूर्पणखी ने अपने बेटे खर और दूषण को राम-लक्ष्मण के विरुद्ध भड़काया। शस्त्रबल और बाहुबल से लड़ते हुए राम-लक्ष्मण ने खर-दूषण को मार डाला। पुत्रवध से क्रुद्ध शूर्पणखी रामण के पास पहुँची। शूर्पणखी से सीता के रूप की चर्चा सुनकर रामण कामोन्मथित हो उठा। उसके निर्देशानुसार उसका मन्त्री मारीच रत्नमय मृग बनकर राम के आश्रम के इर्दगिर्द घूमने लगा। सीता ने उस मृग को अपना खिलौना बनाना चाहा। सीता के आग्रह पर राम धनुष-बाण हाथ में लेकर मृग के पीछे चल पड़े। बहुत दूर निकल जाने पर राम ने मृग के मायावी रूप को पहचान लिया और उसपर बाण फेंका। मारीच मरते समय कर्कश स्वर में चिल्ला उठा : “लक्ष्मण, मुझे बचाओ !" वह आवाज सुनकर सीता ने राम को बचाने के लिए लक्ष्मण को भेजा। लक्ष्मण राम के रास्ते से दौड़ चले। . इसी बीच मौका देखकर रामण, विना किसी विघ्न-बाधा की परवाह किये, सीता को चुरा ले गया। रास्ते में विद्याधर जटायु से रामण की जोरदार टक्कर हुई। लेकिन, उसे पराजित करके रामण किष्किन्धिपर्वत के ऊपर से होते हुए लंका पहुँच गया। जटायु से प्राप्त सूचना के अनुसार, राम-लक्ष्मण किष्किन्धिपर्वत पर पहुँचे। वहाँ वाली और सुग्रीव दो विद्याधर भाई परिवार-सहित रहते थे। उनमें स्त्री के निमित्त आपसी विरोध था। बाली से पराजित सुग्रीव ने अपने मन्त्री हनुक (हनुमान्) और जाम्बवान् के साथ जिनमन्दिर में शरण ली थी। राम-लक्ष्मण को देखकर सुग्रीव डर गया और भागने को उद्यत हुआ। तब हनुमान् ने उसे समझा-बुझाकर स्थिर किया और वह सौम्य रूप धारण कर राम-लक्ष्मण के पास गया। हनुमान् के पूछने पर लक्ष्मण ने अपना परिचय देते हुए कहा : “हम इक्ष्वाकु-वंश में उत्पन्न राजा दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण हैं। पिता की आज्ञा से जंगल आये हैं। मृग से मोहित हम जब अपने आश्रम से बाहर थे, तभी मेरी भाभी सीता का अपहरण हो गया। उनको ही ढूँढ़ने के लिए हम दोनों भाई घूम रहे हैं।" इसके बाद हनुमान् ने बाली और सुग्रीव का परिचय दिया। अन्त में राम की स्वीकृति से अग्नि का साक्ष्य लेकर, सुग्रीव के साथ रामकी मैत्री स्थापित हुई। राम के बल की परीक्षा लेकर सुग्रीव ने उन्हें बाली के वध के निमित्त नियुक्त किया। बाली और सुग्रीव दोनों भाई समान रूपवाले और स्वर्णमालाओं से विभूषित थे। दोनों में फर्क न जानते हुए राम ने बाण फेंका, इसलिए उसका कोई प्रभाव न पड़ा। बाली ने सुग्रीव को पुन: पराजित कर दिया। तब सुग्रीव की विशिष्ट पहचान के लिए राम ने उसे वनमाला पहना दी। उसके बाद रामने एक ही बाण से बाली को मार डाला और सुग्रीव को राजा के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। उसके बाद, हनुमान् ने सीता का समाचार प्राप्त करने के लिए प्रस्थान किया। उन्होंने लौटकर राम के लिए सीता की प्रियवस्तु (शिरोभूषण) अर्पित की। राम के आदेश से सुग्रीव ने भरत के पास विद्याधरों को भेजा। भरत ने चतुरंग सेना भेजी। राम सुग्रीव के साथ विद्याधरों से सुरक्षित समुद्रतट पर पहुंचे। इस पार और उस पार स्थित पर्वत के बीच समुद्र में पुल बाँधा गया। राम की सेना लंका के पास उतरी और समुद्रतट पर सेना ने पड़ाव डाला। अपने सैन्य-शिविर के साथ युद्धोद्यत रामण ने राम के सैन्य-शिविर की कोई परवाह नहीं की।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy