SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ ८९ किया है, वह अपने-आपमें अतिशय अद्भुत और अद्वितीय है, यहाँतक कि जैन साहित्य की कृष्णकथाओं में भी इस कथाप्रसंग का जोड़ नहीं है । वसुदेव की पत्नी रोहिणी और देवकी ने वस्त्र, आभरण और परिचारिकाएँ प्रदान कर रुक्मिणी का सत्कार किया । किन्तु, देवी सत्यभामा और उनके परिजनों के लिए रुक्मिणी के आवास में प्रवेश वर्जित कर दिया गया था । सत्यभामा ने कृष्ण से कहा कि आप जो कुमारी ले आये हैं, उसे दिखलाइए । पहले तो कृष्ण ने टालने की कोशिश की, लेकिन जब सत्यभामा ने बहुत आग्रह किया, तब कृष्ण ने कहा : “रैवत पर्वत के निकट नन्दनवन में उसे ( रुक्मिणी को) देखना ।" कृष्ण ने मूर्त्तिकारको आज्ञा दी कि वह नन्दनोद्यान के श्रीगृह में स्थित श्री की प्रतिमा जल्द हटा दे और उस प्रतिमा की पीठिका को सजाये । मूर्त्तिकार ने आज्ञा का पालन किया । कृष्ण ने उद्यान - यात्रा के लिए अपनी देवियों को आज्ञा दी और स्वयं वह भी प्रात:काल रुक्मिणी के साथ सारथी दारुक द्वारा चालित रथ पर सवार होकर नन्दनवन में गये और श्रीगृह में रुक्मिणी को ठहराते हुए उससे कहा: “जब देवियों के आने का समय हो जाय, तब तुम श्रीपीठ पर मूर्त्तिवत् निश्चल भाव से खड़ी हो जाना।" यह कहकर कृष्ण वहाँ से निकले और रथ के समीप आकर खड़े हो गये । सभी देवियाँ वहाँ आईं । सत्यभामा ने जब कुमारी (रुक्मणी) के बारे में पूछा, तब कृष्ण ने उससे श्रीगृह में जाकर उस कुमारी को देखने को कहा। देवियाँ वहाँ गईं और 'ओह ! शिल्पी ने तो साक्षात् भगवती की मूर्ति बनाई है' कहकर उन्होंने उसे ( रुक्मिणी को) प्रणाम किया । सत्यभामा ने उस प्रतिमा से प्रार्थना की : “यदि आगन्तुक कुमारी ही - श्री से परिवर्जित होगी, तो मैं तुम्हारी पूजा करूँगी।” यह कहकर वह बाहर निकली और उस कुमारी को चारों ओर खोजने लगी। दासियों ने उससे कहा : "स्वामिनी ! वह किसी जंगल के राजा की लड़की होगी। आपके सामने खड़ी होने की शक्ति भी उसमें नहीं है। किसी झाड़ी में छिपी खड़ी होगी । " कृष्ण सत्यभामा कृष्ण के पास जाकर बोली : “ आपकी प्रिया तो नहीं दिखाई पड़ रही है ।” ने कहा: “ अवश्य वह वहीं श्रीगृह में होगी, जाओ, देखो।” इसके बाद स्वयं कृष्ण देवी सत्यभामा के साथ श्रीगृह गये । कृष्ण को देखते ही रुक्मिणी मूर्तिपीठ से उतर खड़ी हुई और कृष्ण के संकेतानुसार उसने सत्यभामा को प्रणाम किया । सत्यभामा ने रुक्मिणी से कहा कि "तुम्हें मैंने पहले ही प्रणाम किया है।” कृष्ण ने बनते हुए कहा : “ कैसे ?” सत्यभामा ने कहा : “यदि मैंने बहन को प्रणाम किया, तो इसमें आप क्यों बोलते हैं ?” इस प्रकार, कलुषित भाव की स्थिति में भी सत्यभामा ने रुक्मिणी को वस्त्र और आभूषणों से सम्मानित किया । सत्यभामा और रुक्मिणी दोनों गर्भवती हुईं। एक दिन उद्यान में दोनों ने आकाशचारी श्रमण को ध्यान में लीन देखा । रुक्मिणी ने उनकी वन्दना करते हुए पूछा : “ भगवन् ! बताइए मेरे पेट से पुत्र उत्पन्न होगा या पुत्री ?” उसके बाद संत्यभामा ने भी पूछा । ध्यानबाधा के भय से 'पुत्र उत्पन्न होगा' कहते हुए वह अन्तर्हित हो गये । I अब रुक्मिणी और सत्यभामा आपस में झगड़ने लगीं कि मुनि ने मुझे ही पुत्र उत्पन्न होने का आदेश किया है । रुक्मिणी बोली कि “पहले मैंने पूछा है ।” सत्यभामा ने प्रतिवाद किया : “ तुमने पहले पूछा सही, लेकिन मुनि ने कुछ कहा तो नहीं। मेरे पूछने पर ही कहा है, इसलिए
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy