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________________ वसदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा इसलिए, आपकी पीड़ा की आशंका से उदास हूँ।” कृष्ण ने कहा : “देवी ! स्त्री के समीप आत्मश्लाघा ठीक नहीं। फिर भी मेरी शक्ति देखो।” यह कहकर कृष्ण ने निकटवर्ती विशाल वृक्षों की पंक्ति को एक बाण में छेद दिया। छिटपुट रूप में भी जितने पेड़ रुक्मिणी ने देखे थे, उन्हें भी उन्होंने चीर दिया और अंगूठी के हीरे को अँगूठे के दबाव से चूर-चूर कर दिया। रुक्मी की सेना जब आ पहुँची, तब कृष्ण ने बलदेव से कहा : “भैया ! आप बहू को लेकर घर जायें । मैं इन्हें (शत्रुओं को) रोकता हूँ।” बलदेव ने कहा : “कृष्ण ! तुम्हीं बहू-सहित विश्वस्त होकर जाओ। मैं इन्हें काकबलि बनाता हूँ।” तब भय खाती रुक्मिणी ने कृष्ण से कहा : “देव ! 'भाई को मरवाकर चली गई', इस प्रकार मेरी निन्दा न हो, इसलिए वैसी ही कृपा कीजिए। आप दोनों तो इन्द्र को भी जीत सकते हैं।" तब कृष्ण ने बलदेव से कहा : “भैया ! आपकी बहू अपने भाई के लिए अभय माँगती है, इसलिए आप कृपा करें ।" बलदेव ने 'तथास्तु' कहा। __ रुक्मी की सेना ने बलदेव पर आक्रमण कर दिया। बलदेव ने देवप्राप्त शंख बजाया। शंख के निष्ठर गर्जन से शत्रुसेना के हाथों से हथियार गिर पड़े। इसके बाद रुक्मी ने बलदेव के रथ पर शर की वर्षा कर दी। लेकिन, बलदेव ने अपने बाणों से रुक्मी के सारे बाण विफल कर दिये, घोड़ों और सारथी को भी बेध दिया । रथ को विनष्ट कर उसके धनुष को भी छिन्न-भिन्न कर दिया और दायें अंगठे को भी छेद दिया। तब, सेना के समझदारों ने रुक्मी को रोकते हुए कहा : “स्वामी ! यह बलराम समर्थ होते हुए भी आपका विनाश नहीं करेंगे, इसलिए युद्ध करना ही व्यर्थ है।” ___ युद्ध से विरत रुक्मी विजयी हुए विना नगर न लौटने की अपनी प्रतिज्ञा की पूर्ति के निमित्त कुण्डिनपुर न जाकर एक स्वतन्त्र ‘भोजकट' नगर बसाकर रहने लगा। युद्धविराम से दूसरे लोग भी प्रसन्न हुए और अनुद्विग्न भाव से लौट चले। रुक्मिणी को भी सूचना दे दी गई कि उसका भाई अक्षतशरीर अपने जनपद को लौट गया। द्वारवती की ओर उन्मुख रुक्मिणी नगर, पर्वत और देश देखती हुई द्वारवती नगरी के बहि:प्रदेश में पहुँची। वहाँ रमणीय उपवन को देख कृष्ण, बलदेव की आज्ञा से ठहर गये। बलदेव ने सारथी सिद्धार्थ को आज्ञा दी : “नगरवासियों से जाकर कहो कि वे विवाह के उत्सव की तैयारी करें।” सारथी चला गया। इधर यक्षों ने वर-वधू का वैवाहिक सत्कार किया। नागरक लोग वहाँ पहुँचे, तो चकित रह गये। वह स्थल देवनगर जैसा हो गया। रात बीती । प्रात: वर-वधू द्वारवती पहुँचे । रुक्मिणी को राजभवन के उत्तर-पश्चिम का खण्ड आवास के लिए दिया गया। इस प्रकार, कृष्ण ने अपने शौर्य-वीर्य के प्रताप से सत्यभामा के अतिरिक्त पद्मावती, गन्धारी, लक्षणा, सुसीमा, जाम्बवती और रुक्मिणी ये छह पलियाँ उपलब्ध की, जिनमें मानवी और विद्याधरी दोनों प्रकार की सुन्दरियाँ हैं। श्रमण-परम्परा के कृष्ण भागधत-सम्प्रदाय की तरह रासलीला-मग्न 'सहस्त्र गोपी एक नारायण' नहीं. अपित बहपत्नीक वीर क्षत्रिय-यवराज हैं। बलराम और कृष्ण की जोड़ी तो भागवत में भी है, किन्तु 'वसुदेवहिण्डी' में चित्रित यह जोड़ी ततोऽधिक विलक्षण है। पारिजातहरण के प्रसंग में रुक्मिणी और सत्यभामा का सपलीत्व वैष्णव-सम्प्रदाय के कवियों ने भी चित्रित किया है। किन्तु संघदासगणी ने इस प्रकरण को जिस ढंग से उपन्यस्त
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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