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महाकवि धनञ्जय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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(१) धनञ्जय और उसकी कृति को पर्याप्त प्रसिद्धि मिली, फलस्वरूप उसे द्विसन्धानकवि नाम से जाना जाने लगा । द्विसन्धान शब्द धनञ्जय के समय का नहीं, दण्डी (७वीं शती) के समय का है, अत: धनञ्जय दण्डी का परवर्ती है ।
कुछ
(२) धनञ्जय-नाममाला की कुछ हस्तलिखित प्रतियों में उलपब्ध अन्तिम पद्यों में धनञ्जय की काव्यप्रतिभा अकलंक की न्यायशास्त्रीय प्रतिभा तथा पूज्यपाद की वैयाकरणप्रतिभा के समकक्ष स्वीकार की गयी है । २ उक्त पद्यों में चर्चित अकलंक और पूज्यपाद निश्चितरूपेण धनञ्जय के पूर्ववर्ती हैं ।
कुछ अन्य हस्तलिखित प्रतियों में उक्त पद्य संशोधित रूप में है । उनमें दण्डी का उल्लेख हुआ है । ३ जल्हण इन पद्यों को कालिदास कृत मानते हैं । दण्डी का उल्लेख होने के कारण ये पद्य कालिदास कृत नहीं माने जा सकते । इस प्रकार धनञ्जय दण्डी के परवर्ती सिद्ध होते हैं ।
(३) वर्धमान (११४१ ई.) ने गणरत्नमहोदधि में धनञ्जय कृत द्विसन्धानमहाकाव्य के कुछ पद्यों को उद्धृत किया है । ४
(४) भोज (११ वीं शती का मध्य) ने उभयालंकार का विवेचन करते हुए दण्डी तथा धनञ्जय के द्विसन्धान-महाकाव्य का उल्लख किया है । ५
प्रमेयकमलमार्तण्ड में
(4) प्रभाचन्द्र (१०-११वीं
द्विसन्धान-महाकाव्य का उल्लेख करता है । ६
(६) वादिराज पार्श्वनाथचरित में धनञ्जय की एकाधिक सन्धान- काव्य में प्रवीणता का उल्लेख करता है । ७
धनञ्जयनाममाला,२०१
१.
२.
३.
शती)
वही
“जाते जगति वाल्मीकौ शब्दः कविरिति स्मृतः ।
कवी इति ततो व्यासे कवयश्चेति दण्डिनि ॥” निघण्टु, २.४९
४. गणरत्नमहोदधि,४.६,१०.५,१८.२२
५.
श्रृंगारप्रकाश, मद्रास, १९६३, पृ. ४०६
६. प्रमेयकमलमार्तण्ड, निर्णय सागर प्रैस, बम्बई, १९४१, पृ. ४० २
७.
पार्श्वनाथचरित, बम्बई,
१९२६,१.२६