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सन्धान-महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा विन्टरनित्ज़ ने इन्हें ऐतिहासिक महाकाव्य की संज्ञा दी है। इनमें महावंश को राजतरंगिणी जैसा ऐतिहासिक शैली का महाकाव्य माना जा सकता है ।
प्राकृत और अपभ्रंश में ऐतिहासिक शैली के महाकाव्यों का लगभग अभाव-सा ही है। वाक्पतिराज कृत गउडवहो प्राकृत का चरित-काव्य है। इस काव्य की शैली शास्त्रीय होने के कारण इसे ऐतिहासिक शैली का चरित-काव्य नहीं माना जाता। (३) रोमांचक या कथात्मक महाकाव्य
चरित-काव्य पौराणिक, ऐतिहासिक और रोमांचक तीनों शैलियों में लिखे गये हैं। संस्कृत के जितने भी चरित-काव्य हैं, कथा-आख्यायिका से बहुत प्रभावित हैं, किन्तु यह प्रभाव सबसे अधिक रोमांचक शैली के चरित-काव्यों पर दिखायी पड़ता है । संस्कृत के कुछ ही ऐसे चरित-काव्य हैं, जो अलंकृत महाकाव्य के रूप में अधिक ख्याति प्राप्त कर सके, यथा-हरिश्चन्द्र कृत धर्मशर्माभ्युदय, मंखक कृत श्रीकण्ठचरित, पद्मगुप्त कृत नवसाहसांकचरित, बिल्हण कृत विक्रमांकदेवचरित आदि।
संस्कृत पण्डितों और नागर जनों की भाषा थी, अत: लोकभाषाओं (प्राकृतों) में ही विभिन्न प्रकार की कथाएं संकलित और निर्मित होती रहीं। गुणाढ्य की बृहत्कथा इसका उदाहरण है । जब प्राकृत साहित्य बहुत समृद्ध और लोकप्रिय हो गया तथा राजदरबारों में उसकी प्रतिष्ठा होने लगी, तब उसकी उपेक्षा करना संस्कृत के पण्डितों के लिए सम्भव न था। अत: प्राकृत कथा-साहित्य का प्रभाव संस्कृत पर पड़ा, उसमें अलंकृत शैली की गद्यबद्ध कथा-आख्यायिकाएं लिखी गयीं । छठी
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"The same Atthakathas are also the sources from which the historical and epic pali poems of Cylon are derived, for the Pali chronicles of Cylon, the Dipavamsa and the Mahavamsa, cannot be termed actual histories, but only historical poems. As it has never been the Indian way to make clearly defined distinction between myth, legend and history, historiography in India was never more than a branch of epic poetry." Winternitz : A History of Indian Literature, Vol.II, Calcutta, 1933,
p.208.