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________________ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना लिखी गयी कल्हण की राजतरंगिणी यद्यपि प्रधानतया इतिहास-ग्रन्थ है, किन्तु उसमें लेखक का नाम कविरूप में स्थान-स्थान पर उल्लिखित होने के कारण डॉ. एस.के.डे प्रभृति विद्वान उसे इतिहास से अधिक काव्य मानते हैं। कल्हण ने स्वयं भी राजतरंगिणी को महाकाव्य कहा है । अस्तु, राजतंरगिणी को यदि महाकाव्य मान लिया जाए, तो वह अपने ढंग का ऐतिहासिक शैली का एकमात्र महाकाव्य ही है, क्योंकि न तो वह महाभारत की भाँति विकसनशील महाकाव्य है, न ही रघुवंश की तरह अलंकृत शास्त्रीय महाकाव्य। ऐतिहासिक चरित-काव्यों में सन्ध्याकरनन्दी के रामचरित का भी नाम लिया जाता है, किन्तु इसमें काव्यात्मकता और ऐतिहासिकता दोनों का अभाव होने के कारण यह महत्त्वपूर्ण काव्य नहीं माना जाता । बारहवीं शती का हेमचन्द्र कृत कुमारपालचरित व्यर्थक काव्य है, इसमें कुमारपाल का जीवन-वृत्त दिया गया है। इसमें ऐतिहासिक शैली तो अपनायी गयी है, पर काव्यात्मकता का नितान्त अभाव है। गुजरात के राजा वीरधवल और विशालदेव के मन्त्री वस्तुपाल और तेजपाल के सम्बन्ध में अरिसिंह ने सुकृतसंकीर्तन और बालचन्द्र सूरि ने वसन्तविलास नामक महाकाव्यों की रचना की । इनमें उपदेशात्मक और इतिवृत्तात्मक वर्णनों के कारण महाकाव्य के गुण नहीं है। पन्द्रहवीं शती में जयचन्द्र विरचित हम्मीरमहाकाव्य ऐतिहासिक शैली का महत्त्वपूर्ण महाकाव्य है, क्योंकि उसमें ऐतिहासिक शैली की सभी विशेषताएं उपलब्ध हैं। इसी काल में जोनराज ने जयानक के पृथ्वीराजविजय महाकाव्य पर टीका लिखी, किन्तु महाकाव्य की खण्डित प्रति ही उपलब्ध होने से उसका रचना-काल निश्चित नहीं है । इसके प्राप्त अंश में पर्याप्त ऐतिहासिकता दृष्टिगोचर होती है। कथाओं और ऐतिहासिक निजन्धरी आख्यानों की दृष्टि से पालि-साहित्य की देन निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण है। जातक कथाओं में कथा-साहित्य का प्रारम्भिक रूप मिलता है और थेरी गाथा और अट्ठकहा में कथा और निजधरी आख्यान का सम्मिश्रण दिखाई देता है । पाँचवीं शती में अट्ठकहा के आधार पर ही सिंहल के इतिहास से सम्बद्ध दो ग्रन्थ दीपवंश और महावंश निर्मित हुए। १. De, S.K. : A History of Sanskrit Literature, p.359. २. द्रष्टव्य-राजतरंगिणी,प्रथम खण्ड,हिन्दी प्रचारक संस्थान,वाराणसी,१९८१,१७,१०
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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