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दैविक प्रभावथी थयुं होय तो ए पण असंभवित न कहेवाय. तेमज एकमत प्रमाणे ६४ वर्ष अने बीजा मत प्रमाणे ६२ वर्ष सुधी धरणविहारनुं काम चाल्युं तेवो निर्देश छे. गमे तेम होय परन्तु आवा विशाल अने नकशीदार मन्दिरने बंधातां जरूर घणां वर्षो लाग्यां हशे तेमां शंका नथी. पहेला अहिं ८४ भूगर्भ ( भोयरा ) हता. पण वर्तमानमां पांच भोयरा खुल्लां छे.
मूल नायकनी प्रतिष्ठा
आवुं विशाल अने अनुपम मन्दिर बंधायुं होवा छतां धरणाशानी भावना तो सात मालनुं मन्दिर बंधाववानी हती, पण तेम करवा जतां कदाच प्रतिष्ठानो लाभ चूकी न जवाय ए आशयथी त्रण माल लगभग पूरा थयां एटलामांज पू. आचार्यदेवेश श्री सोमसुन्दरसूरिजी म. ना हाथे प्रतिष्ठा कराववानो निर्णय कर्यो. धरणाशेठनी विनंतिथी आचार्यश्री धरणाशाए बंधावेल विशाल पौषधशालामां पधार्या. तेमनी साथे ५०० साधुओनो परिवार हतो. तेमां चार सूरिवरो तेमज नव उपाध्याय महाराजो हता. सं. १४९८ फागण वद ५ना शुभ दिवसे आ.म. श्री सोमसुन्दरसूरिजी म.ए सूर्यसम तेजस्वी मूलनायक श्री आदिनाथ भ.ना चार बिंबोनी प्रतिष्ठा करी.
मूलनायकना दरवाजा पासे विशालकाय लेख छे. तेमां त्रैलोक्यदीपक चतुर्मुख युगादीश्वर प्रासादनी सं. १४९६मां प्रतिष्ठा कर्यानो उल्लेख छे. वली श्री ज्ञानविमलसूरिजी म. ए रचेल 'श्री राणकपुर तीर्थ स्तवन 'मां सं. १४९७ मां प्रभुजीनी प्रतिष्ठा कर्यानुं जणाव्युं छे. पण मूल नायकजीनी मूर्ति ऊपर सं.१४९८नो लेख होवाथी प्रभुजीनी प्रतिष्ठा तो १४९८मां ज थई हशे मूल नायकजीना प्रतिष्ठा समये बीजां ३४००० प्रतिमाजी महाराजनी प्रतिष्ठा करवामां आवी हती. धरणाशानी अंतिम घडीए तेमना मोटा भाई रत्नाशाहे तेमनी अभिलाषाने बनती शक्तिए पूर्ण करवानुं वचन आप्युं हतुं अने तदनुसार पाछलनां आठ दश वर्ष सुधी रतनाशाहे जे काम कराव्यं ते पहेलां करतां वधु कलामय बने तेवी रीते कराव्युं होय तेम रत्नाशाहे करावेलां कामो जोवाथी जणाय छे. एक शिलालेख ऊपरथी श्रीहीरसूरीश्वरजी म.ना उपदेशथी मेघनाद महामंडप बंधावरावी आ विविध हैम रचना समुच्चय
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