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छे" आ वर्णनथी पंदरमा सैकामां राणकपुर केव॒ विशाल नगर हशे तेनो सुन्दर ख्याल मले छे.
श्री मेह कविना कथन मुजब पंदरमी सदीमां अहिं सात जिनमन्दिर हता. त्यारपछी १९५५मां श्री ज्ञानविमलसूरि म.नी तीर्थमालामां अने अढारमासैकामां पं. श्रीमहिमाकविए रचेली तीर्थमालामां अहिं पांच जिनमन्दिर होवानो उल्लेख छे. अत्यारे अहिं त्रण जिनमन्दिर छे.
लगभग ५९ वीघाना विशाल कंपाउंडमां त्रण जिनमन्दिर, त्रण धर्मशाला, भोजनशाला, उन्नत नगारखानु, बगीचो, रेंट, कुंड विगेरे विद्यमान छे. कंपाउंड चारे बाजु मजबूत कोटथी घेरायेलुं छे. त्रण जिनमन्दिरोमां मुख्य श्री आदिनाथ भगवाननु अति मनोहर चैत्य छे. आनी बारीक कोरणी अने वैविध्यभर्यु कलाकौशल भलभलाने मंत्रमुग्ध बनावी दे छे. प्राग्वाटकुलावतंस परमार्हत श्री धरणाशाहे बंधावेल आ मन्दिर जाणे स्वर्गमांथी कोई देवविमान उतरी न आव्यु होय तेम भासे छे. श्री हीरविजयसूरि रासमां आ तीर्थनो महिमा गातां श्री ऋषभदासजी कविए कह्यु छ के :
"गढ आबु नवि फरसीयो, न सुण्यो हीरनो रास, राणकपुर नर नवि गयो, त्रिण्ये गर्भावास"
खरेखर आबु अने राणकपुरनी यात्रा जेणे नथी करी तेनुं जीवतर नकामुं छे, ए लोकवाणी- कथन ए तीर्थोनां साक्षात् दर्शन कर्या पछी जरूर यथार्थ लागे छे. तेमज मारवाडी भाषामां पण आ तीर्थ माटे एक कहेवत प्रसिद्ध छे 'टुकडो टुकडो खाणो, पण राणकपुरजी जाणो' अर्थात् गमे तेटलुं कष्ट वेठीने, दुःख सहन करीने पण श्री राणकपुरजीनी यात्रा जीवनमां जरूर करवी..
कंपाऊंडमां प्रवेश करतां मुख्य दरवाजामां पेसतां पंहेला 'मघाई' नामनी नदी आवे छे, कलकल शब्द करती प्रभु दरबारमा जतां भावुकोनुं स्वागत न करती होय तेम वही रही छे. त्रैलोक्य दीपक मन्दिर
धरणविहार लगभग ४८००० चोरस फीटना विस्तारमां आवेलु छे. एने नलिनीगुल्मविमान, त्रिभुवनदीपक-चतुर्मुख प्रासाद आदि श्रीकीर्तिकल्लोलकाव्यम्
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