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॥ श्रीगौतमस्वामिने नमः ॥
प्रास्ताविकम्
जैन संस्कृति आर्यावर्तनी प्राचीनतम संस्कृतिओमांनी एक छे. तेनो इतिहास जेटलो प्राचीन छे तेटलो ज गंभीर अने महत्त्वपूर्ण छे. आ संस्कृति पूर्वे विशालक्षेत्रमां प्रसरेल तेमज पूर्ण रूपे विकास पामेली हती. तेनो आछो ख्याल भारतनी धरतीपर ठेर ठेर पथरायेलां उज्जवल कलाना आदर्श नमूना भूत पवित्र तीर्थधामोथी थाय छे. तेवा तीर्थोमांनुं एक राजस्थानमां आवेलुं श्रीराणकपुरजी महातीर्थ छे, जेनुं शिल्पस्थापत्य अने उन्नतकलासौन्दर्य सौ कोईने आश्चर्यकित बनावे छे. गोलवाड प्रान्तनी पंचतीर्थमां आ तीर्थ मुख्य छे.
फालना स्टेशनथी २१ माईल अने सादडी गामथी ६ माईल दूर आडावला (अरवली ) पर्वतनी रम्य उपत्यका ( तलेटी ) मां श्री राणकपुरजी तीर्थ आवेलुं छे. पूर्वे मेवाडमां अने अत्यारे राजस्थानमां गणातुं आ तीर्थ जैनोनी भूतकालीन जाहोजहाली तेमज अजोड शिल्पकलानुं मूर्त दर्शन करावे छे. चारे बाजु सघन वनराजिथी वींटायेलुं आ स्थान खूबज रमणीय छे. पंदरमी सदीमां राणकपुर घणुं ज मोटुं अने समृद्ध नगर हतुं, कारणके ते वखते जैनोना ज केवल ३००० घरो हतां, तो बीजा वर्णना पण घणां ज घरो हशे तेमां शंका नथी. पं. श्री मेहकविए सं. १४९९मां रचेला 'श्रीराणिगपुर चतुर्मुख प्रासादस्तवन मां तेओ राणकपुरनुं आंखोए जोयेलुं वर्णन करतां कहे छे. "राणकपुर जोईने मनमां घणो ज आनन्द अने उल्लास थाय छे. आ नगर अणहिलपुर पाटण जेवुं छे. तेना गढ मन्दिर पोलो वगेरे अत्यन्त सुन्दर छे. नगरनी वचमां नदीना निर्मल नीर वहे छे. कुवा, वाव-वाडी-दुकानो अने जिनमन्दिर घणां छे. वली अहिं अढारे वर्णना लोको अने लक्ष्मीवंत वेपारीओ घणां रहे छे, तेमज पुण्यवंतोनो तो पार ज नथी - बहु वसे छे. तेमां संघवी धरणाशा मुख्य छे. जेना दान, पुण्य, अने जस जगमां विस्तरायेलां छे, अने जिनभवननो उद्धारक छे, तेनी मातानुं नाम कामलदे छे जे रतनसिंह अने धरणिंद नामना पुत्ररत्नोने जन्म आपी धन्य धन्य गवाय विविध हैम रचना समुच्चय
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