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________________ भगवानके मुख्य शिष्य । [ ३१७ नेमिनाथजीके तीर्थमें हुआ बतलाया जाता है ।' और उस अव-स्थामें इन पिहिताश्रव मुनिका भगवान् पार्श्वनाथजीकी शिष्यपर-म्पराका मुनि होना अशक्य है । परन्तु जब नागकुमार चरितमें अनेक ऐसी बातों का उल्लेख हम पाते हैं जिनका सम्बंध भगवान् - महावीर के प्रारम्भिक कालकी घटनाओंसे प्रायः ठीक बैठता है, -तो यही प्रतिभाषित होता है कि यह पिहिताश्रव मुनि वही हैं जो श्री पार्श्वनाथमीकी शिष्यपरम्परा में थे। हो सक्ता है कि नागकुमा -रका जन्म श्री नेमनाथस्वामी के तीर्थमें होगया हो और वह भगवान् पार्श्वनाथजीके तीर्थ के अंतिम समयतक बल्कि उपरान्ततक विद्यमान रहे हों, क्योंकि उनकी आयु भी १०७० वर्षकी बतलाई गई है । उनकी कथामें जय और विजय नामक मुनियोंका भी उल्लेख मिलता है; और इसी नामके मुनियोंका होना श्री पार्श्वनाथजीकी शिष्यपरम्परा में भावदेवसूरिके "पार्श्वनाथ चरित" से भी प्रकट है जैसे कि हम ऊपर देख चुके हैं । गिरितट नगरसे नागकुमारका श्री नेमि - 1 नाथजीकी वंदना के लिये पर्वतपर जानेका उल्लेख भी इस बातका द्योतक है कि उस समय भगवान् नेमिनाथ विद्यमान नहीं थे ।. नागकुमारकी कथा में सिंधुदेश के राजा चंडप्रद्योत बताये गये हैं । " उस प्राचीनकाल में इस नामके एक प्रामाणिक राजा केवल उज्जयनीके थे और वह भगवान् महावीर के समय में भी विद्यमान थे । किन्तु यहां पर जो उनको सिंधुदेशका राजा लिखा गया है, वह भी ठीक २ 3 १ - श्री पुण्याश्रव कथाकोष' पृ० १८० । १६९।४ - पूर्व० पृ० १७३ । ५ - पूर्व० पृ० पृ० २३ । २ - पूर्ववत् । ३ - पूर्व० पृ० १७२ । ६ - बुद्धिस्ट इन्डिया
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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