SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९८ ] भगवान पार्श्वनाथ | ५. 3. है, क्योंकि जैनाचार्योंने चर्मणावती नदीको ही सिंधुनदी माना है; बल्कि इस नामकी एक नदी वहीं मौजूद थी। इसलिये ही इस नदी के तटवर्ती देशको सिंधुदेश जैन शास्त्रोंमें लिखा गया है । राजा चेटककी राजधानी विशालाको भी इसी अपेक्षा सिंधुदेश में जैनाचार्योंने लिखा है । उज्जयनीका ही दूसरा नाम विशाला था । कवि कालिदासने अपने मेघदूत काव्यमें उसीके लिये 'विशालां विशालाम् ' पदका प्रयोग किया था । इसीपरसे उपरान्तके जैनाचार्योंने विशाला (वैशाली) को सिंधुदेशमें बतला दिया था; यद्यपि वास्तवमे वह विदेह देशमें थी, जैसे कि आज पुरातत्वकी खोजसे प्रमाणित हुआ है । आज भी जैन शास्त्रकारों की तरह कतिपय विद्वान भ्रमसे कवि कालिदासके उक्त पदका प्रयोग वैशालीसे सम्बंधित कर देते हैं; जबकि वास्तवमें वह उज्जयनीके लिये ही लागू है। अतएव इस कथन से यह स्पष्ट है कि उपरोक्त चण्डप्रद्योत, जो सिंधुप्रदेशके राजा बताये गये हैं, वही हैं जो उपरान्तमें उज्जयनीके प्रख्यात् राजाके रूपमें हमें हिन्दू, बौद्ध और जैनशास्त्रों में मिलते हैं । इस उल्लेखसे भी नागकुमारजीका भगवान् १ - अस्य: सिन्धोः चर्मण्वत्याः । - योगिराट: - ' पार्श्वाभ्युदयकाव्य टीका | २ - भवभूतिका 'मालतीमाधव नाटक' - कनन्धिम जागरफी ( नया संस्करण ) नोट पृ० ७२७ । ३–कवि धनपालने अपने 'भविष्यदत्त चरित' में इस प्रदेशका सिंधु नामसे उल्लेख किया है- देखो अंग्रेजी जैनगजट वर्ष २२ पृ २४९ पर मेरा लेख । ४ - श्रेणिकचरित्र पृ० और उत्तरपुराण पृ. ६३४ । ५ - विशालां उज्जयिनीपुरीम् । 'विशालोज्जयिनीसमा' इत्याभिधानात् योगिराट: श्री पार्श्वाभ्युदय काव्य पृ० ९०-९१ । ६ - देखो हमारा 'भगवान महावीर' पृ० ६३-६८ । ७ - डॉ० पद वैशालीके लिये बतलाया है और उनके अनुसार हमने ऐसा लिखा था । बी० सी० लॉने यह
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy