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________________ ३१६ ] भगवान् पार्श्वनाथ | शास्त्रों में मिलता है, जिनके पुत्र प्रसेनजित थे ।' साथ ही राजाका हरिवाहन नाम भी श्वेतवाहन नामसे सदृशता रखता है । इन बातोंके देखते हुए जब हम 'आराधना कथाकोष' में सुकौशल निकी कथाको पढ़ते हैं, तो यह ठीक जंच जाता है कि उक्त "मौन एकादशीव्रत कथा' का वर्णन ऐतिहासिकता के विरुद्ध है । इसी " कथासंग्रह' की एक अन्य कथा में हम मध्य कालके राजा नरव-र्माका सम्बंध देख ही चुके हैं। जिसको उस कथामें बहु प्राचीन कालमें जा रखखा है । 'आराधना कथाकोष' में सुकौशल अयोध्या के - राजा प्रजापालके समय में हुये सेठ सिद्धार्थके पुत्र बताये गये हैं और उन्हें दूसरे भवसे मोक्षगामी होते. बतलाया गया है । किन्तु इस सब वर्णन से इतना तो स्पष्ट ही है कि मुनिराज पिहिताश्रवके निकट किसी व्यक्तिने अवश्य ही दीक्षा ग्रहण की थी, यह व्यक्ति संभवतः सेठ सिद्धार्थ ही प्रतीत होते हैं। साथ ही अंगदेशस्थ चम्पापर राजगृहके राजा श्रेणिकके पुत्र कुणिकका राज्याधिकारी होने का भी सम्बंध उक्त वर्णनसे स्पष्ट है । चम्पाके राजा अयोग्य थे और मंत्रियोंने उन्हें राज्य-भ्रष्ट कर दिया था । इस मौकेपर कुणिकका वहां पर अधिकार प्राप्त कर लेना सुगम ही था । इस तरह इस विवरण में कुणिकका चम्पापर राज पानेका कारण उपलब्ध हो जाता है, जो भारतीय इतिहासके लिये भी उपयोगी है । अस्तु ! श्री ' नागकुमार चरित' में भी एक पिहिताश्रव मुनिका उल्लेख हमें मिलता है; किन्तु जैन शास्त्रोंमें श्री नागकुमारजीको भगवान् १ - इन्डियन हिस्टोरीकल क्वार्टली भाग १ पृ० १५८ । २-आराधना कथाकोष भाग २ पृ० २३२ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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