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________________ उत्तराध्ययन सूत्र 1999 असंखकालमुकोर्स, अंतोमुहुत्तं कायठिई पुढवीणं, तं कार्यं तु PL LET जहण्णगं । अचओ ॥ ८१ ॥ २८५ जहण्णगं । अनंतकालमुक्कासं, अंतोमुहुत्तं विजढंमि सए काए, पुढविजीवाण अंतरं ॥ ८२ ॥ एएस वण्णओ चैव गंधओ रस- फासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाईं सहस्ससौ ॥ ८३ ॥ दुविहा आऊजीवा उ सुहुमा बायरा तहा । पजत्तमपज्जत्ता, एवमेण दुहा पुणो ॥ ८४ ॥ वायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदय उस्से, हरतणू महिआ हिमे ॥ ८५ ॥ एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुमा सबलोगम्मि लोग से य बायरा ॥ ८६ ॥ 3 अन्तर्मुहूर्त जघन्यका; कायस्थितिः पृथ्वीनां तं कार्यं त्वमुञ्चतः ||२१|| अनन्तकालमुत्कृष्टमन्तर्मुहूर्त जघन्यकम् त्यक्ते स्वके फाये, पृथ्वीजीवानामन्त ||२२|| एतेषां वर्णतचैव गन्धतो रसस्पर्शतः; संस्थानादेशतो वापि, विधानानि सहस्रशः ||८३|| द्विविधा अजीवास्तु, सूक्ष्मा बादरास्तथा; पर्याप्ता अपर्याप्ता, एवमेते द्विधाः ए ||२४|| बाद में तु पर्याप्ता, पञ्चधास्ते प्रकीर्तिताः; शुद्धोदकं चावश्यायो, ह हिमे ||५|| एकविधा अनानात्वाः, सूक्ष्मास्तत्र व्याख्याताः; सूक्ष्माय सर्वलोके, लोकदेश पादाः ||६||
SR No.022588
Book TitleUttaradhyayanani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryodaysagarsuri, Narendrasagarsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1992
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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