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.... अध्ययन ३२
भावाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ गरूवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्टे ॥९२॥ भावाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्षण-सण्णिओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥१३॥ भावे अतित्ते य परिग्गहे य, सत्तोवसत्तो ण उवेइ तुहि । अतुट्ठिदोसेण दही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥९४॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणी, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वइढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा ण विमुच्चई से ॥१५॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, भावे अतितो दुहिओ अणिस्सो ॥९६॥ भावाणुरत्तस्स परस्स एयं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि? । तत्थावभोगे वि किलेसदुखं, णिवत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥९७॥ एमेव भावम्मि गओ पओसं, उवेइ दुखोघपरंपराओ । पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो हाइ दुहं विवागे ॥९॥
भावानुगा ॥९२।। भावानु ॥९३।। भावे ॥९४॥ भावे ॥९५॥ भावे ॥१६॥ भावानु ॥९७॥ भावे ॥९८॥