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________________ २४२ अध्ययन ३२ गंधेसु जो गिद्धिमुबेइ तिव्वं, अकालियं पावह से विणासं । रागाउरे ओसहगंधगिद्धे, सप्पे क्लिाओ विव णिवखमन्ते ॥५०॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तस्सि क्खणे से उवेइ दुखं । दुइंतदोसेण सएण जन्तू, ण किंचि गंधं अबरम्झई से ॥५१॥ एगंतरते रुहरंसि गन्धे, अतालिसे से कुगई फओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, ण लिप्पई तेण मुणी विशागो ॥५२॥ गंधाणुगासागुगए य जीवे, चराचरे हिंसहऽणेगरुवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले, पीलेइ अनट्ठगुरू किलिटे ॥५३॥ गंधाणुवाएण परिम्गहेण, उप्पायणे रकमणसणिमओगे । वए विओगे य कर्हि सुहं से, संभोगकाले य अतितिलयामे ! ॥५४॥ गंधे अतित्ते य परिग्गहे य, सत्तोवसतो ण उवेइ तुद्धि । अतुटिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आयबई अदत्तं ॥५५॥ तहाभिभूयस्स अदचहारिणो, गंधे अतितस्स परिग्गहे य । मायामसं वइढइ लोभदोसा, तत्थावि. दुक्खा ण चिमुबई से ॥५६॥ गन्धेषु; रागातुर औषधिगन्धगृद्धः, सो विलादिव निष्क्रामन् ॥५०॥ ऽगन्धो ॥५१।। गन्धे ॥५२॥ गन्धानुगा ॥५३॥ गन्धानु ॥५४॥ गन्धे ॥५५॥ गन्धेऽ ॥५६॥
SR No.022588
Book TitleUttaradhyayanani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryodaysagarsuri, Narendrasagarsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1992
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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