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उत्तराध्ययन सूत्र
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मोसस्स पच्छा य पुरस्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंती, गंधे अतित्तोदुहिओ अणिस्सो ॥५॥ गन्धाणुरत्तस्स णरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, णिवत्तई जस्स कए ण दुवखं ॥५०॥ एमेव गंधम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोपघरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विव.गे ॥५९॥ गंधे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । ण लिप्पए भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपल.सं ॥६०॥ जीहाए रसं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुण्णमाहु । तं दोसहेउं अमणुण्णमाहु, समो उ जो तेसु स वीयरागो ॥६१॥ रसस्स जीहं गहणं वयंति, जीहाए रसं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुण्णमाहु, दोसस्स हेउं अमणुण्णमाहु ॥६२॥ रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे बडिसविभिण्णकाए, मच्छे जहाआमिसभोगगिद्धे ॥६३॥
गन्धेऽ ॥५७॥ गन्धानुर० ॥५८॥ गन्धे ग० ॥५९॥ गन्धे वि० ॥६०॥ जिह्वाया रसं ॥६१॥ रसस्य जिह्वा, जिह्वाया रसं ॥६२॥ रसेषु०; रागातुरो बडिशविभिन्नकायो, मत्स्यो यथाऽऽमिषभोगगृद्धः ॥६३॥