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________________ नथी. जे रसनेंद्रिय अत्यार सुधी काबूमां राखी हती ते हवे लगाम विनाना अश्वनी माफक स्वतंत्र बनी गई. धीमे धीमे शेलकराजर्षि संयम-पालनथी पण च्युत थवा लाग्या. पासत्थापणानो अंश आववा लाग्यो. प्रमाद पण तेनामा प्रवेश करवा लाग्यो. पीठ, फलक, शय्यासंथारो समय परिपूर्ण थये पाछा आपवा जोईए छतां तेम न करतां ते भोगववा लाग्या. हवे तो मंडुक राजानी परवानगी विना तेओ विहार करवाने पण असमर्थ बन्या त्यारे पंथक सिवायना बाकीना साधुओ एकठा थया अने परस्पर विचारवा लाग्या के–“शेलक राजर्षिए राज्य त्यजी दीक्षा लीधी हती परंतु कर्मयोगे पूर्ववत् पौष्टिक भोजन मळतां तेओ तेमां गृद्ध बनी गया छे. विहारनी तो वात ज करता नथी अने संयम-पालनमां दूषण लागे तेवू आचरण करी रह्या छे माटे आपणे तेवो प्रमाद करवो उचित नथी. कारण के करोडो रत्न आपतां पण मनुष्य जीवननी पळ पुन: प्राप्त थाय तेम नथी तो तेने प्रमादरूपी धूळ मात्रथी शा माटे व्यर्थ गुमाववी? आपणे सर्वेए प्रात:काळे शेलक राजर्षिनी आज्ञा लई अत्रेथी विहार करवो, पंथक मुनिने तेमनी वैयावच्च करवा मूकी जवा अने आपणी पासे जेना जेना पीठ, फलकादि छे ते तेमने पाछा सोंपी देवा.” आ प्रमाणे निर्णय करी, सर्व हकीकत शेलक राजर्षिने जणावी, पंथक मुनिने तेमनी पासे राखी तेओ सर्व भव्यजनोने प्रतिबोधार्थे अन्य देशमा विहार करी गया. ___पंथकमुनिने पूर्ण विश्वास हतो के शेलक राजर्षिने वहेलुं मोडुं पण आत्मभान थशे अने शुद्ध मार्गे आवशे. पंथक मुनि शेलक राजर्षिनी सारी रीते वैयावच्च करवा लाग्या. तेमने आहार लावी आपवो, तेमनुं मानु परठवी देवू, संथारो करी आपवो इत्यादि वैयावच्च शुद्ध मनथी करवा लाग्या. आहार करीने जेम सिंह पोतानी गुफामां पड्यो रहे तेम हवे तो शेलक राजर्षि अतीव प्रमादी थई गया. पडिलेहण, प्रतिक्रमणादिक आवश्यक क्रिया पण लगभग विस्मृत थवा जेवी बनी गई. अंकुश विनाना हस्तीनी बीजी शी दशा थाय? एवामां कार्तिक चोमासुं आव्यु, शेलकराजर्षिनी साथे रहेवा छतां पंथक मुनिना आचरणमां कदापि पण स्खलना न थई. तेओ तो तन अने मनथी वैयावच्च करतां अने संयमाराधनमां तत्पर रहेता. कार्तिक चोमासाने दिवसे चारे प्रकारनो आहार करी, सुरापान करी शेलक राजर्षि तो संध्यासमये ज सूई गया. चौमासी प्रतिक्रमण करतां पंथक मुनिए चौमासी खामणा खामवाना समये निद्राधीन बनेला शेलक राजर्षिना चरणने पोताना मस्तकद्वारा स्पर्श कर्यो तेवामां निद्राभंग थवाथी शेलकाचार्य अत्यंत क्रोधी बनीने बोल्या के–“कोणे मारी निद्रानो भंग कयों? अकाळे मृत्युने कोण वांछे छे? आवो पुण्यहीन कोण छे?" त्यारे पंथकमुनिए अत्यंत नम्रतापूर्वक जणाव्यु के–“हे भगवंत ! हुं आपनो शिष्य पंथक ज छु. आज चौमासी प्रतिक्रमण करतां आपने खमाववा में मारा मस्तकद्वारा आपनो चरणस्पर्श कर्यों छे. आपनो अविनय थयो होय तो हुं माफी मांगुं छु. फरी वार आवं कार्य नहिं करूं.” आ प्रमाणे कहीने पंथक मुनि शेलकाचार्यने वारंवार खमाववा लाग्या. पंथक मुनिना आप्रमाणेना कथनथी अने तेमना अत्यंत विनयशीलपणाथी शेलक राजर्षिनो क्रोध शांत थइ गयो. तेमने पोताना अविचारीपणानुं भान थयु. पोते शुद्ध स्थविरपणाथी पतित थईने पासत्थापणाने पाम्या तेने माटे अत्यंत परिताप थवा लाग्यो. हस्तिनो श्रीगच्छाचार–पयन्ना- ३३
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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