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विषम परिस्थितिनुं मने खरेखलं भान थयुं छे तेथी हुं चारित्र ग्रहण करवा इच्छु छु. तमारी शी इच्छा छे ते कहो.” त्यारे पंथक प्रमुख प्रधानोए कह्यं के–“हे महाराज ! अमे पण संसारथी भय पाम्या छीए. पहेला पण तमे ज अमारा आलंबनरूप हता तो हवे पण तमे ज आधारभूत थाओ. तमे चारित्र ग्रहण करशो तो साथोसाथ अमे पण संयम धर्म स्वीकार\" प्रधानोनी हकीकत सांभळी राजाए फरमाव्यु के–“जेओ संसारथी भयभीत थया होय तेओ पोतपोताना पुत्रोने कुटुंबनो भार सोंपी, शिबिकामां बेसी मारी पासे आवो.” आ प्रमाणे सूचन कर्या बाद बधा प्रधानो आव्या एटले राजाए पण पोताना मंडुक नामना पुत्रने राज्यसिंहासने बेसारीने, तेनी आज्ञा लईने महामहोत्सवपूर्वक शुकाचार्य पासे पांचसो प्रधानो सहित प्रव्रज्या लीधी. साधुपणानो आचार पाळता सामायिकथी प्रारंभीने क्रमश: तेओ अग्यार अंगना ज्ञाता थया. तेमने शक्तिशाळी अने गच्छ संभाळवाने लायक जाणी शुकाचार्ये शेलक राजाने पण आचार्यपदवी आपी शेलक राजर्षि बनाव्या अने तेमने पांचसो साधुओनो परिवार सोंपी अलग विचरवानी आज्ञा आपी. शुकाचार्य पोतानो अंतिम समय नजीक जाणी श्रीशत्रुजय तीर्थे आव्या अने अंतगड केवळी थई शिवसुखने पाम्या.
आ बाजु शेलक राजर्षि पण अत्यंत कठिन तपश्चर्या करवा लाग्या अने पारणे पण तुच्छ-लूखो आहार करवा लाग्या. आम करवाथी परिणाम ए आव्यु के-पूर्वे राजा होवाथी सुखपूर्वक रहेला अने मिष्ट तेमज रसवाळो आहार करेलो तेने बदले आवो रस-कस विनानो आहार करवाथी शरीरमां व्याधि उत्पन्न थयो. दाहज्वर तथा पीतज्वर थई गयो अने तेनी महावेदना थवा लागी. आवी असह्य वेदना सहन करतां करतां पण शेलक राजर्षि पृथ्वीपीठ पर विचरवा लाग्या. व्याधिने कारणे तेमनुं शरीर दिवसे दिवसे दुर्बळ बनवा लाग्युं आ प्रमाणे विचरता विचरता तेओ शेलगपुर आवी पहोंच्या अने सुभूमिभाग उद्यानमां आवी वास को. पौरलोकोनी साथे मंडुक राजा पण तेमने वांदवा आव्यो. ते समये शेलक राजर्षिना अत्यंत दुर्बळ देहने व्याधिग्रस्त जोईने ते विचारमां पडी गयो. तेणे तेमने विज्ञप्ति करी के - "हे भगवंत ! आपनुं शरीर व्याधिग्रस्त बन्युं छे. आप जो के तेनी उपेक्षा करी रह्या छो, पण शरीर धर्मायतन छे एटले तेनी पण मावजत (हिफाजत) तो करवी पडे माटे आप मारी जनशाळामां पधारो. हुं वैद्योद्वारा आपनी चिकित्सा करावी निर्दोष ने पथ्य औषधवडे आपने निरोगी बनावं." आ प्रमाणे विनति करी मंडुक राजा स्वावासे गया बाद तेना आग्रहने वश थई शेलक राजर्षि पण बीजे दिवसे सूर्योदय थया बाद, पोताना पंथक प्रमुख पांचसो शिष्यो साथे जनशाळामां गया अने फासु पीठ, फलकादि भंडोपगरण लईने रहेवा लाग्या. मंडुक राजाए विचक्षण वैद्योने बोलावी का के—“शेलक राजर्षिनी चिकित्सा करी, तेमनुं दोष रहित औषध करो.” वैद्योए राजर्षिना व्याधि, निदान करी का के–“जो तमो रस-कसवाळा आहारना साथे मदिरापान करो तो ज तमारो व्याधि विनाश पामे.” राजर्षिए वैद्योना कथन मुजब व्याधिना उपशमनार्थे आहार साथे ते लेवा मांड्यु. आ प्रमाणेना सुरापानथी तेमनो व्याधि नाश पाम्यो अने शरीरे पण पुष्ट बन्या, परंतु आ उपचारनुं विपरीत परिणाम ए आव्यु के शेलक राजर्षि आ पौष्टिक आहार अने सुरापानमां आसक्त बनी गया. कर्मयोगथी धीमे धीमे तेमनुं अतिशय रसलोलुपपणुं जागृत थयु. हवे तेनाथी ते छोडातुं
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-३२