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साध्वी पण स्त्रीजाति ज छे तेथी ते पण चपळ ने चंचळ मनवाळी होय छे. जो तेने लगाम विनाना अश्वनी माफक छूटी मूकवामां आवे तो ते कल्याण साधवाने बदले उलटुं हानिकर ज वर्तन आचरे छे. स्त्रीजातिने केटला अंकुशनी जरूर छे ते नीचेना श्लोकथी बराबर स्पष्ट समजाशे. का छे के–“पिता रक्षति कौमारे, भर्ता रक्षति यौवने । पुत्रस्तु स्थविरे भावे, न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ॥१॥" बालवयमा कुमारी होय त्यां सुधी स्त्री, रक्षण पिता करे छे, बाद युवती थाय त्यारे धणी पोषण करे अने वृद्धा थाय त्यारे पुत्रादिक तेनुं रक्षण करे; पण स्त्री स्वतंत्र न रहे. स्त्री- चित्त केटलुं दुष्ट होय छे ते विषयमां रेवती- वृत्तांत सारो प्रकाश फेंके छे. रेवतीनुं दृष्टांत
राजगृही नगरीमां श्रेणिक राजा राज्य करता हता. नगरनी बहार गुणशील नामना यक्ष- मंदिर हतुं. ते नगरीमां महाशतक नामनो धनाढ्य गाथापति वसतो हतो. तेना आठ क्रोड सोनैया भंडारमा हता, आठ क्रोड व्यापारमा हता अने आठ करोड सोनैया, घरेणुं हतुं. आ उपरांत दश-दश हजार गायो- एक गोकुल एवा आठ गोकुल एटले एंशी हजार गायोनो ते स्वामी हतो. तेने तेर पत्नीओ हती, तेमां रेवती मोटी हती. रेवती पोताना पियरथी आठ क्रोड सोनैया अने आठ गोकुल कन्यादानमां लावी हती ज्यारे बाकीनी बारे पत्नीओ एक एक क्रोड सोनैया अने एक-एक गोकुल लावी हती. आ रीते महाशतकनी संपत्ति अने ऋद्धि अढळक हती. __भगवान महावीर विहार करतां करतां राजगृहीना गुणशील उद्यानमां समवसर्या. सर्व लोकोनी साथे महाशतक पण वंदनार्थे गयो. प्रभुनी अमृतमय देशना सांभळी समस्त पर्षदा आनंदित बनी. सर्व पोतपोताने स्थाने गया बाद महाशतके परमात्माने विज्ञप्ति करी के-हे प्रभो ! हुं पंचमहाव्रतरूप सर्व विरति ग्रहण करवा अशक्त छु, परंतु मने समकितमूळ श्रावकना बार व्रतरूप धर्म उच्चरवो. भगवंते का के–'धर्मस्य त्वरिता गति:' धर्मना सारा कार्यमां कदापि ढील न करवी. महाशतके श्रावकनां व्रतो अंगीकार कर्यां. आणंद श्रावक करतां विशेष ए ग्रहण कर्यु के–चोवीश क्रोड सोनैया उपरांत संपत्ति बधे तो तेनो धर्ममार्गमां व्यय करवो अने प्रतिदिन व्यापार करतां बे कांसाना पात्र भराय तेटलुं रुपुं उपार्जन थाय त्यारबाद व्यापारनो त्याग करवो. तेम ज रेवती आदि तेर स्त्रीयो उपरांतनो पण त्याग. धीमे धीमे महाशतक जीवाजीवादिक नव तत्त्वनो ज्ञाता थयो. महावीर भगवंत पण अन्यत्र विहार करी गया.
एकदा रात्रिसमये रेवती जागत थई गई अने कटम्ब संबंधी विचारणा करवा लागी. तेवामां तेने विचार आव्यो के-आटली बधी सम्पति अने ऋद्धि होवा छतां हुं महाशतक साथे यथेच्छ भोगविलासो भोगवी शकती नथी. वळी मारी शोक्यो अंतरायभूत (वचमां आवे) छे माटे तेने अग्निना उपद्रवथी, शस्त्रप्रहारथी के विषप्रयोगथी मारी नां. आ प्रमाणे द्दढ विचार करी पोतानी शोक्योना छिद्रो जोवा लागी. तेओ वच्चे परस्पर अंतर पडावी रेवतीए छ शोक्योने शस्त्रप्रहारथी अने छने झेर आपीने मारी नाखी. तेना बार क्रोड सोनैया अने बार गोकुलोपण पोते लई लीधा.
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २४४