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________________ बाद रेवती महाशतक साथे यथेच्छ भोगो भोगववा लागी. विशेष भोग भोगववानी लालसाथी ते मांसलोलुपी थई अने प्रतिदिन तळेला, अग्निमां शेकेला विगेरे प्रकारना मांस खावा लागी. मांसनी साथे मदिरानुं व्यसन पण थयुं. ___एकदा राजगृही नगरीमां पर्वना दिवसोमां अमारी पडह वाग्यो एटले रेवतीने मांसने माटे मुश्केली ऊभी थई. राजाज्ञानु उल्लंघन थाय तो शिक्षापात्र थवाय एटले मांसना अभावमां रेवतीए पोताना गोकुलना माणसने बोलावीने का के-तारे हमेशां बे वाछडाओने मारीने तेनुं मांस मने मोकलाववं. आ प्रमाणे आवतां मांसने शेकीने, तळीने रेवती प्रतिदिन खावा लागी. ___ महाशतक श्रावक व्रत-पालन करतां चौद वर्ष व्यतीत कर्यां. एकदा पाछली रात्रे धर्मजागरिकामा विचार कयों के-गृहव्यवस्थामां में आटला वर्षों गाळ्या, हवे तो प्रात:काळे पुत्रने सर्व कारभार सोंपी हुं श्रावकनी प्रतिमा धारण करूं. प्रात:काळमां कुटुम्बीजनोने जमाडी, पुत्रने भार सोंपी, जिनेश्वरे कहेल धर्म अंगीकार करीने तेणे पौषधशाळामां वास कयों. आ अवसरे मांस तथा मदिराथी मदोन्मत्त बनेल रेवती पोताना केश छूटा मूकी, ओढणाना छेडाओ आघापाछा करती पौषधशालामा ज्यां महाशतक बेठा छे त्यां आवीने कहेवा लागी के हे श्रावक ! तुं चारित्र धर्मनी इच्छा करे छे, पुन्य बांधे छे, मोक्षनी वांछा करे छे पण ते धर्म, पुण्य, स्वर्ग अने मोक्ष विगेरे शुं छे ? धर्म करीने देवलोक जवानी तारी झंखना छे पण मारी साथे यथेच्छ भोग-विलासो भोगव तो देवलोकनुं सुख तो अहीं ज तने दर्शाएँ. मोक्षमां तो स्त्री नथी, अने स्त्री विनानुं सुख केQ? वळी परलोक कोणे जोयो छे? माटे मारी साथे मनगमतां विषयसुखो भोगव. रेवतीना आवां कष्टदायक वचन सांभळवा छतां महाशतक अंश मात्र चलायमान न थया त्यारे रेवती जेवी आवी हती तेवी चाली गई. बाद महाशतक श्रावके क्रमश: श्रावकनी अगियारे पडिमा वहन करी. पहेली प्रतिमा-जिन धर्मने विषे रुचि, मिथ्यात्वनो त्याग, पोषह के उपवास विगेरे न करे परंतु समकित रूडी रीते पाळे; बीजो त्याग न करे. बीजी प्रतिमा-समकित होय, श्रावकना बार व्रतो रूडी रीते पाळे पण सामायिक तथा देशावगासिक न करे. त्रीजी-सर्व प्रकारे समकित पाळे, श्रावकनां बार व्रतो पाळे, सामायिक तेम ज देशावगासिक करे परंतु आठम, चौदश, पूनम के अमावास्याने दिवसे पोषह न करे. चोथी-समकित, बार व्रत, सामायिक विगेरे करे, आठम-चौदश विगेरे दिवसोने विषे पौषध करे परंतु रात्रिने विषे काउसग्गध्यान करे. पांचमी-चोथीमां दर्शाव्या प्रमाणे सर्व क्रिया करे, उपरांत रात्रिभोजननो त्याग करे, रात्रिप्रतिमा करे-काउस्सग्ग करे, स्नान न करे, रात्रि भोजन न करे, धोतियु मोकळु पहेरे, दिवसे ब्रह्मचर्य पाळे, रात्रिए भोग-प्रमाण करे- आ प्रमाणे जघन्यथी एक, बे के त्रण दिवस अने उत्कृष्टथी पांच मास पर्यन्त विचरे. छट्ठी-पांचमीमां दर्शाव्या उपरांत रात्रिमैथुननो पण त्याग करे, परंतु सचित्तनो त्याग न होय. आ प्रमाणे जघन्यथी एक, बेत्रण दिवस अने उत्कृष्टथी छ मास पर्यंत विचरे. आठमी-सातमीमां दर्शाव्या ऊपरांत पोते आरम्भ न करे परंतु बीजा पासे श्रीगच्छाचार-पयन्ना-२४५
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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