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________________ (ई) पुरुषचिन्ह मोटु तथा जाडु होय (उ) स्त्री सरखी कोमळ वाणी होय अने (ऊ) स्त्रीनी माफक पेशाब करे एटले के 'छरछर' ध्वनि करता स्त्रीना पेशाबनी माफक मातरुं करे तेमज तेना पेशाबमां फीण न होय- आ छ प्रकार पंडक-नपुंसकना लक्षण जाणवा. . २. वातिक-जे- लिंग कारणे अगर तो वगर प्रयोजने पण स्तब्ध-शांत होय, स्त्रीनी साथे भोग भोगवतां दीर्घ समये मैथुन कर्म करवा लायक थाय. ३. क्लीब-तेना चार प्रकार छे. (१) नग्न स्त्रीने निरखीने जेनं मन क्षोभ पामे, मननो वेग रोकी न शके ते दृष्टिक्लीब, (२) जे स्त्रीनो ध्वनि मात्र सांभळी मननो वेग न रोकी शके ते शब्दक्लीब, (३) जे स्त्रीनो स्पर्श सहन न करी शके ते अश्लिष क्लीब अने(४) स्त्रीए बोलाव्या मात्रथी जे मैथुनना मनोरथवाळो ते आमंत्रित क्लीब. ४. कुंभिक - जेने मोहनीयना प्रबल उदयथी धातु निकळवाना समये लिंग तथा अंड बने कुंभनी माफक फूली जाय-विकारवंत बनी जाय ते. ५. ईर्ष्याळु- कोई बीजाने स्त्री साथे भोग भोगवतो जोईने तेनी ईर्ष्या करे. ६.शकुनी- चकला, पारेवानी माफक वारंवार मैथुन सेवन कर्या करे तेम ज हमेशां विषयमां ज आसक्त रहे. ७. तत्कर्मसेवी - पोताना लिंगमांथी वीर्य निकळ्या पछी, जेवी रीते कृतरो पोताना लिंगने चाटे छे तेनी माफक स्वलिंगने चाटे. ८. पाक्षिकापाक्षिक-शुक्लपक्षमा काम भोगनो तीव्र अभिलाष होय. परंतु कृष्णपक्षमां शांत होय अगर तो कृष्णपक्षमां भद्रकामेच्छावाळो होय परंतु शुक्लपक्षमां शांत होय एटले के एक पक्षमां नपुंसक अने एक पक्षमा पुरुष अर्थात् जे पक्षमा उदय ते पक्षमा अत्यंत वेदोदय होय ते पाक्षिकापाक्षिक वळी केटलाक मास तथा छ मासमां बे पखवाडिया स्त्री तथा पुरुषवेदना उदयवाळा होय छे, तेमज नसकवेदना पण होय छे ते पाक्षिकापाक्षिक. ९. सौगंधिक - पोताना लिंगने सारं जाणीने तेमज लिंगने आंगळी लगाडीने सूंघे ते. १०. आसक्त - भोग भोगवतां वीर्य स्खलित थई गयु, हवे बीजी वार भोग करवानी शक्ति नथी त्यारे पोते स्त्रीने आलिंगन आपीने रहे. आ दशे प्रकारना नपुंसको दीक्षा आपवाने लायक नथी. कोई शंका करतां कहे छे के– पुरुषमां पण नपुंसक कह्या अने अहीं पण नपुंसक कह्या तो ते बन्ने वच्चे शो तफावत छे? आनो जवाब जणावतां कहे छे के पूर्वे तो पुरुषना जेवी आकृतिना नपुंसक कह्या छे अने अहीं तो नपुंसक जेवी आकृतिना नपुंसको वर्णव्या छे. स्त्रियो संबंधी पण एम ज जाणी लेवं. हवे दीक्षाने लायक छ नपुंसको जणावतां कहे छे के–“वद्धिए १ चिप्पिए २ चेव, श्रीगच्छाचार-पयन्ना-९३
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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