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________________ साध्वीओए पण साधु पासे ज प्रायश्चित ग्रहण करवानो नियम कर्यो. श्रीआर्यरक्षितसूरि शासनप्रभावना करी स्वर्गे संचर्या. तेमना शिष्यो पैकी दुर्बलिकापुष्पमित्र, फल्गुरक्षित अने विंध्यमुनि विगेरे महाप्राज्ञ अने विलक्षण मुनिवरो हता. । आ अढार प्रकारो पुरुषने दीक्षा देवा संबंधी विचारवाना छे. ऊपर जणावेल अढार प्रकारनां पुरुषोने दीक्षा न आपवी. आ अढार प्रकारो स्त्रीसंबंधी पण जाणवा, परंतु स्त्री नपुंसक कोने जाणवी ते संबंधी जणावतां कहे छे के-ते पुरुष नपुंसकने सेवे तथा सेवावे तेमज पुरुषनो वेष धारण करी सेवे तेम ज सेवावे तेने स्त्री नपुंसक जाणवी. ते स्त्रीवेद तथा नपुंसकवेद एम बंने वेदनी वेदनारी होय छे. स्त्रीओने माटे ऊपर जणावेल अढार भेद उपरांत बीजा पण बे भेद होय छे, जे नीचे प्रमाणे १९. गर्भवंती- गर्भवंती स्त्रीने दीक्षा न देवी कारण के असतीपोषणनो दोष लागे, बाळकने त्यजी देवू पडे तेमज ऊंचा उदरने जोईने लोको निंदा करे. २०. सवत्सा- जे स्त्रीने बाळक धावतुं होय तेने दीक्षा न आपवी. अंतराय दोष लागे, लोको अवर्णवाद बोले. हवे नपुंसक संबंधी वर्णन करतां शास्त्रकार जणावे छे के- नपुंसको सोळ प्रकारना छे, ते पैकी दीक्षा माटे दश योग्य नथी, ज्यारे छ योग्य छे. जे दश अयोग्य छे ते नीचे प्रमाणे जाणवा “पंडए १ बाइए २ कीबे ३, कुंभी ४ ईसालुए ५ त्तिया-सउणी ६ तक्कम्मसेवी य ७, पक्खियापक्खिए ८ इय ॥ ४ ॥ सोगंधिए अ९ आसत्ते १०, दस एए नपुंसगा । संकिलिट्ठ त्ति साहूणं, पव्वावेउं अकप्पिया ॥५॥ १ पंडक, २ वातिक, ३ क्लीब, ४ कुंभिक, ५ ईर्ष्याळु, ६ शकुनी, ७ तत्कर्मसेवी, ८ पाक्षिकापाक्षिक, ९ सौगंधिक अने १० आसक्त - आ दश प्रकारना नपुंसको अशुभ परिणामवाळा होवाथी दीक्षा आपवा योग्य नथी. १.पंडक-जे पुरुष पुरुषाकार लिंगधारी होय परंतु जेनो हावभाव, गति विगेरे स्त्री जेवो होय ते पंडक-नपुंसक कहेवाय. तेना छ भेद छे- (अ) महिला स्वभाव- चालवानी गति मंद होय, चालतां चालतां पार्छ वाळी जुए, शंकापूर्वक चाले, शीतळ अने कोमळ शरीर होय, स्त्रीनी माफक हाथ हलाववा पूर्वक बोले, स्त्रीनी पेठे हाथना लटका-मटका-चेनचाळा करे, पेट ऊपर तिच्छो जमणो हाथ राखें, तथा डाबा हाथनी कोणी पेट ऊपर स्थापन करी, हथेली ऊपर मुख राखी ऊभो रहे, पोताना वस्त्रने वारंवार हाथथी स्पर्श करे, शरीरे वस्त्र धारण न करेल होय तो हाथवडे छाती, हृदय विगेरे ढांके, बोलवाना समये आंखना ध्रुवां ऊंचा-नीचा करे, स्त्रीना घरेणां पहेरवानुं विशेष मन करे, पुरुषोनी सभामां बेसतां भय पामे-संकोच थाय, स्त्रीनी सभामां बेसे तो आनंद पामे, स्त्रीना काम जेवा के-रांधवू, पीरसवं, खांडवं, सांधवं विगेरे कार्य करवामां कुशळ होय ते महिलास्वभाव (आ) स्वरभेद-स्त्री जेवो अगर तो पुरुष जेवो स्वर न होय.(इ) वर्णभेद - स्त्री तथा पुरुषथी भिन्न वर्ण होय श्रीगच्छाचार-पयन्ना- ९२
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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