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________________ ६४ ] 5 मूल सूत्रम् - श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९ । १ तत्र्येककाययोगायोगानाम् ॥४२॥ सुबोधिका टीका मनोयोग: वचनयोग: काययोगश्चेति योगस्यैते त्रयो भेदाः वर्णिताः सन्ति । येषु चैते त्रयोयोगाः प्राप्यन्ते तेषु आद्यः शुक्लध्यान पृथक्त्ववितर्कः । एतच्चतुर्विधं शुक्लध्यानं त्रियोगस्यान्यतम योगस्य काय योस्यायोगस्य च यथासंख्यं भवति । तत्र योगत्रयाणां पृथकत्व - वितर्क + मैनाकान्यतममयो + गानामेकत्ववितर्कं काययोगानां क्रियाप्रतिपात्य + योगानां व्युपरत क्रियमनिवृतीति दिक् । * सूत्रार्थ - वह ( शुक्लध्यान) अनुक्रम से तीन योगवाले, किसी एक योग वाले, काय योग वाले तथा योगरहित को होता है। * विवेचनामृतम् * स्थान की दृष्टि से शुक्लध्यान के चार भेदों में से पहले दो भेदों के स्वामी ग्यारहवें तथा बारहवें गुणस्थान वाले ही होते है, जो कि पूर्वधर भी हों । पूर्वधर विशेषण से सामान्यत: यह अभिप्राय है कि जो पूर्वधर न हो परग्यारह आदि अङ्गों का धारक हो, उसके ग्यारहवें, बारहवें गुणस्थान में शुक्लध्यान न होकर धर्मध्यान ही होगा। इस सामान्य विधान का एक अपवाद यह है कि जो पूर्वधर न हों उन माषतुष, मरुदेवी आदि आत्माओं में भी शुक्लध्यान सम्भव है। शुक्लध्यान के शेष दो भेदों के स्वामी केवली अर्थात् तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थान वाले ही हैं। योग दृष्टि से तीन योग वाला ही चार में से पहले शुक्लध्यान का स्वामी होता है। मन, वचन तथा काया में से किसी एक योगवाला शुक्लध्यान के दूसरे भेद का स्वामी होता है। इस ध्यान के तीसरे भेद का स्वामी केवल काय योग वाला तथा चौथे भेद का स्वामी केवल अयोगी होता है। 5 मूल सूत्रम् - काश्रये सवितर्के पूर्वे ॥ ४३ ॥ सुबोधिका टीका एकाश्रय इति। पृथकत्ववितर्कस्य, एकत्वविर्तकस्य च आश्रय एवमेव द्रव्यम् अस्ति। एते पूर्वविदः श्रुतकेवलिन एव भवन्तीति । प्रथम - द्वितीयध्यानं तावत् सवितर्को भवति । पृथक्त्व वितर्कनामकं शुक्लध्यानं सविचारं भवति ।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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