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४६ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ९।१ पौन:पुन्येन शुद्धोच्चारणम् पुनरावर्तनम्-आम्नायो नाम। ज्ञात वस्तुनो विषयस्य वा रहस्योद्घाटनं तत्त्वार्थप्रवचन नाम धर्मोपदेशः। * सूत्रार्थ - वाचना प्रच्छना अनुप्रेक्षा आम्नाय तथा धर्मोपदेशा-ये पांच स्वाध्याय के भेद हैं।
* विवेचनामृतम् * आचार्य श्री अभयदेव सूरि ने स्थानंग टीका में स्वाध्याय की परिभाषा प्रस्तुत करते हुए कहा है- सुष्ठु आ मर्यादया अधीयते इति स्वाध्याय: इति स्वाध्याय: १ सत् शास्त्रों को मर्यादा पूर्वक पढ़ना, विधि सहित अनुशीलन करना स्वाध्याय कहलाता है। स्वाध्याय, मन को निर्मल, शुद्ध बनाने की प्रक्रिया है। स्वाध्याय जीवन-विकास की सीढ़ी है। भगवान् महावीर स्वामी ने उत्तराध्ययन में कहा है
सज्झाएवा निउत्तेण सव्वदुक्खविमोक्खणो स्वाध्याय करते रहने से समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है। जन्म-जन्मान्तर के अनेक कर्म, स्वाध्याय से क्षीण हो जाते हैं। भगवती सूत्र में स्वाध्याय के पांच प्रकार बताते हुए कहा गया है
सञ्झाए पंचविहे पण्णत्ते तं जहा
वायणा, पडिपुच्छणा परियट्टाणा, अणुप्पेहा धम्मकहा।' स्वाध्याय के पांच प्रकार हैं- वाचना, पृच्छना परिवर्तना, अनुप्रेक्षा, तथा धर्मकथां। उमास्वाति महाराज ने भी इसी तच्च को प्रस्तुत सूत्र के माध्यम से प्रस्तुत किया है। १. वाचना - शब्द (मूल पाठ) या अर्थसहित पाठ का वाचन-वाचना' कहलाता है।
२. शंका/संदेह दूर केने के लिए या किसी विशेष निर्णय के लिए ज्ञानी से पूछना 'पृच्छना' कहलाता है।
३. शब्द, पाठ, विषय या उसके अर्थ का निरन्तर चिन्तन-मनन 'अनुप्रेक्षा' कहलाता है।
४. ज्ञात वस्तु या विषय का बार-बार शुद्धोच्चारण पुररावर्तन या ‘आम्नाय' कहलाता है। १. स्थानांग टीका ५/३/४६५ २. उत्तराध्ययन २६/१० ३. चन्द्रप्रज्ञप्ति- ९२ ४. भगवती सूत्र २५/७