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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ४७ ५. ज्ञात वस्तु या विषय के तात्त्विक रहस्य को समझना धर्मकथा या धर्मोपदेश कहलाता है।
* व्युत्सर्गभेदाः * ॐ सूत्रम् -
बाह्याभ्यन्तरोपध्योः॥२६॥
॥ सुबोधिका टीका बाह्येति। ममता निवृत्ति रूपो व्युत्सर्ग: त्याग: एक एव किन्तु त्याज्यवस्तुन: बाह्याभ्यन्तर रूपेण द्विधात्वमस्ति। अतएव त्यागोऽपि द्विविध: बाह्योपधिरूपः, आभ्यान्तरोपधिरूपः।
धन-धान्य-भवन-क्षेत्रादि बाह्य-पदार्थानां ममता त्यागो बाह्योपधि-व्युत्सर्ग:। शारीरिककाषायिक विकाराणां ममता त्याग: आभ्यन्तरोपधि व्युत्सर्ग:। * सूत्रार्थ - बाह्य और आभ्यन्तर उपधि का त्याग ये व्युत्सर्ग (त्याग) के दो भेद हैं।
* विवेचनामृतम * ममता की निवृत्ति के रूप में व्युत्सर्ग अर्थात् त्याग एक प्रकार का ही होता है किन्तु त्याज्य वस्तु या विषय के बाह्य व आभ्यन्तर भेद होने के कारण व्युत्सर्ग के भी दो प्रकार बताये गए हैं१. बाह्य व्यत्सर्ग २. आभ्यन्तर व्युत्सर्ग।
१. बाह्य व्युत्सर्ग - धन, धान्य, भवन क्षेत्र आदि बाह्य पदार्थों की ममता का त्याग करना बाह्य व्युत्सर्ग कहलाता है।
२. आभ्यन्तर व्युत्सर्ग - देह की अहंता-ममता का त्याग करना एवं कषाय सम्बन्धी विकारों की एकाग्रता का त्याग करना आभ्यन्तर व्युत्सर्ग कहलाता है।
पांचवें आभ्यन्तर तप का नाम व्युत्सर्ग है। यह बाह्य-आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का होता है। ध्यातव्य है कि कायोत्सर्ग आदि करने को व्युत्सर्ग प्रायश्चित कहते हैं तथा परिग्रह के त्याग को व्युत्सर्ग कहते हैं।
___शरीर, भोग, यश, प्रतिष्ठा आदि समस्त तत्त्वों के प्रति अनासक्ति, निर्ममता ही व्युत्सर्ग का मौलिक अर्थ है। भगवान् महावीर स्वामी ने आचारांग में कहा
जे ममाइय मई जहाइ मे, जहाइ ममाइयं। सेहु दिट्ठपहे मुणी जस्स पत्थि ममाइयं॥
१. उत्तराध्ययन - २९/३