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________________ ७२१ ] सप्तमोऽध्यायः [ ५७ (१) मिथ्याउपदेश-सच-झूठ बात के कुरास्ते-कुमार्ग पर चलना। परपीड़ाकारी वचन, असत्य उपदेश, अतिसंघान उपदेश इत्यादि मिथ्या उपदेश हैं। चोरी करने वाले चोर को मार डालो, तथा बन्दरों को पूर दो इत्यादि परपीड़ाकारी वचन हैं। असत्य-झूठी सलाह देकर विपरीत मार्ग पर चलाना यह असत्य-झूठा उपदेश है। विवाद में अन्य दूसरे को छतरने का उपाय बताना। यह प्रतिसंधान उपदेश है। यहाँ परपीड़ाकारी वचन में अन्य-दूसरे को दुःख नहीं देना। इससे अहिंसा का पालन नहीं होता है। अन्य-दूसरे समस्त व्रत अहिंसा के पालन के लिए हैं। इस परपीड़ाकारी वचन से बाह्य में व्रतभंग नहीं होते हुए भी प्रान्तरदृष्टि से व्रतभंग है । जिस विषय में अपने को वास्तविक अनुभव नहीं हो, उस विषय में सलाह देवे और अन्य व्यक्ति विपरीत मार्ग पर चले। उसमें अपनी दृष्टि से असत्य-झूठ नहीं होते हुए भी अनुभवी की दृष्टि में असत्य-झूठ ही है। इसलिए बाह्य से सत्य है, तथा तात्त्विकदृष्टि से असत्य है। इस तरह अतिसंधान में भी यथायोग्य समझ लेना चाहिए। (२) रहस्य-अभ्याख्यान-रहस्य यानी एकान्त में बनेल, अभ्याख्यान यानी कहना। जैसे-परस्पर विरुद्ध राज्यों, मित्र-मित्र तथा पति-पत्नी इत्यादि की एकान्त में हुई क्रिया या बात आदि को हास्यादिपूर्वक बाहर प्रकट करनी। अर्थात् गुप्त वृत्तान्त-हकीकत बाहर आने से पति को दुःख उत्पन्न हो, क्लेश-कंकास हो, यावत परस्पर मारामारी पर्यन्त का प्रसंग भी उपस्थित हो जाए। यहाँ पर बात-हकीकत सच्ची-सांची होने से बाह्यदृष्टि से व्रतभंग न होते हुए भी तात्त्विक दृष्टि से व्रतभंग होने से रहस्याभ्याख्यान अतिचार होता है।' (३) कूटलेखक्रिया-मिथ्यालेख (जाली लिखापढ़ी)। अर्थात्-सच्चे लेख में फेरफार करना, चोपड़ा आदि में असत्य-झूठी साक्षी पूरनी, खोटी-झूठी सही करनी, खोटा-झूठा जमा खर्च करना, सील (मोहर) हस्ताक्षर इत्यादि से खोटा-झठा दस्तावेज बनाना तथा लेख लिखना, एवं असत्य-झूठी बिना छापनी-छपानी इत्यादि। यहां पर असत्य-झूठ बोलने का नियम है, असत्यझूठ लिखने का नियम नहीं है। इससे बाह्यदृष्टि से व्रत का भंग नहीं है, किन्तु तात्त्विक दृष्टि से (जो दोष असत्य-झूठ बोलने से लगते हैं, वे दोष असत्य-झठ लिखने से, लिखाने से भी लगते हैं।) इसलिए व्रत का भंग होता है। यह कूटलेखक्रिया प्रतिचार है । (४) न्यासापहार-धरोहर (अमानत) रखी हुई वस्तु का अपहरण करना, वह न्यासापहार है। जैसे—किसी ने अमुक रकम अपने को साचवने के लिए दी हो, समय जाते देने वाला व्यक्ति कितनी दी है, यह भूल जाए। जब वह लेने को प्राए तब रखी हुई रकम से कम-न्यून मांगे तो वह जितनी मांगे उतनी दे देवे। शेष रकम स्वयं-पोते ही हजम कर जाए। उदाहरण हजार रुपए साचवने के लिए दिये हैं। वापिस मांगने पर "तुमने सात सौ दिये हैं", ऐसा कह करके उसको सात सौ ही देवे। और शेष रकम तीन सौ स्वयं-पोते ही हजम कर लेवे। १. योगशास्त्र इत्यादि ग्रन्थों में 'गुह्यमाषण' तरीके इस प्रतिचार का निर्देश है।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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