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________________ ४० ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ७।१६ दीनामन्यतमं संस्तरमास्तीर्यस्थानं वीरासननिषद्यानां वाऽन्यतममास्थाय धर्मजागरिका परेणानुष्ठेयो भवति । उपभोग - परिभोगवतं नामाशन-पान-खाद्य-स्वाद्य-गन्ध-माल्यादीनामाच्छादनप्रावरणालङ्कार-शयनासनगृहयानवाहनादीनां च बहुसावद्यानां वर्जनम् । अल्पसावद्यानां अपि परिमाणकरणमिति । अतिथिसंविभागो नाम न्यायागतानां कल्पनीयानां अन्नपानादीनां द्रव्याणां देशकाल-श्रद्धा-सत्कारक्रमोपेतां परयात्मानुग्रहबुद्धया संयतेभ्यो दानमिति । उपर्युक्तानि अहिंसादिकपंचव्रतानि यानि सन्ति तानि मूलव्रतानि । तेषां पोषकाः निर्मलतादिगुणोत्पादकाः दिग्वताः उत्तरव्रताः। ते-ते च सप्तः ।। ७-१६ ।। * सूत्रार्थ-प्रगारी-श्रावक दिग्व्रत, देशव्रत, अनर्थदण्ड विरमण व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, उपभोग परिभोग परिमारण और अतिथिसंविभाग व्रत से भी युक्त होता है ।। ७-१६ ।। ॐ विवेचनामृत ॥ यद्यपि अहिंसादिक व्रतों को सम्पूर्ण रूप से स्वीकार करने में असमर्थ है, तथापि त्यागवत्ति की भावनावाले गृहस्थी की मर्यादा में रहते हुए भी अपनी त्यागवृत्ति के अनुसार व्रतों को अल्पांश में स्वीकार कर सकते हैं। वे गृहस्थ अणुव्रतधारी (श्रावक) कहलाते हैं । * पाँच अणुव्रतों के नाम * गृहस्थ जीवन में मन, वचन, काय से सर्वथा हिंसा का त्याग नहीं हो सकता है। इसलिए अपनी त्यागवृत्ति की योग्यता के अनुसार मर्यादापूर्वक हिंसा का त्याग करे, वह अहिंसा अणुव्रत है । इसी तरह असत्यादि परिग्रह पर्यन्त (२-५) व्रतों का अपनी परिस्थिति के अनुसार मर्यादित रूप से त्याग करना ही अणुव्रत है। * तीन गुणव्रत के (६) अपनी त्यागवृत्ति के अनुसार चारों दिशाओं के परिमाण की मर्यादा करे। इससे मर्यादा के बाहरी क्षेत्रों में समस्त प्रकार के अधर्म से निवृत्ति होती है, इसे विगवत कहते हैं । (७) दिशि का मान अहर्निश के लिए किया हुआ है तथापि उसमें प्रयोजन के अनुसार प्रतिदिन क्षेत्र की मर्यादा करे, उसे देशव्रत कहते हैं। (८) अपनी आवश्यकता-जरूरत के बिना निरर्थक प्रवृत्ति करनी वह अनर्थदंड है। उससे निवृत्त होना, उसे अनर्थदंड कहते हैं ।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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