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________________ ३० ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ७६ असत्य के सम्बन्ध में शास्त्र में आते हुए तीन भेदों का संक्षिप्त दिग्दर्शन नीचे प्रमाणे हैंअसत्य के तीन भेद हैं -(१) सद्भाव प्रतिषेध, (२) अर्थान्तर और (३) गरे । सद्भाव प्रतिषेध के दो भेद हैं-(१) भूतनिह्नव तथा (२) अभूतोद्भावन । (१) भूतनिह्नव-भूत यानी बना हुआ और निह्नव यानी छुपा हुआ। अर्थात् हो चुकी वस्तुस्थिति का अपलाप करना वह 'भूतनिह नव रूप असत्य' कहा जाता है। जैसे किसी ने अपनी अमुक रकम अल्प समय के लिए दी हो, मुद्दत पूर्ण होते ही वह लेने के लिए जब आ जाय तब नहीं दी है ऐसा इस तरह कहना, अथवा अपने पास रुपये-पैसे होते हुए भी मांगनार को अभी मेरे पास नहीं हैं ऐसा कहना, वह 'भूतनिह्नव रूप असत्य' है । (२) अभूतोद्भावन-अभूत यानी नहीं बना हुआ। उद्भावन यानी उत्पन्न करना। नहीं बनी हुई वस्तुस्थिति को उत्पन्न करना, वह 'प्रभूतोदभावन रूप असत्य' कहा जाता है। जैसे—अन्य किसी व्यक्ति ने अपने पास से अमुक वस्तु नहीं ली हो, तो भी उस व्यक्ति को तुमने मेरे पास से अमुक वस्तु ली है, ऐसा कहना, वह 'अभूतोद्भावन असत्य है। (२) अर्थान्तर-अर्थान्तर यानी फेरफार। वस्तु जिस स्वरूप में हो, उस स्वरूप से प्रथगभिन्न स्वरूपे फेरफार करके कहना वह 'अर्थान्तर असत्य' कहा जाता है। जैसे-* अन्य-दूसरे को एक हजार (१०००) रुपये दिये हों, किन्तु अल्प समय के बाद मैंने बारह सौ (१२००) रुपये दिये थे, ऐसा कहना। * नकली वस्तु को असली कहना और असली वस्तु को नकली कहना । * पुराने माल को नया माल कहना तथा नये माल को जूना माल कहना। इत्यादि । आम इस तरह अल्प फेरफार के बाद जो बोलने में आता है, वह 'अर्थान्तर असत्य' है । (३) गर्दा-सत्य बोलते हुए भी हिंसा, कठोरतादिक से युक्त वचन बोलना, वह 'गर्हारूप असत्य' है। * हिंसा के कारणभूत सत्यवचन भी असत्य हैं। पांच व्रतों में अहिंसा मुख्य व्रत है। अन्य व्रत जो हैं, वे उसके रक्षण के लिए हैं। अर्थात् असत्य आदि व्रतों का बाह्य दृष्टि से पालन होते हुए भी जो उससे अहिंसा व्रत का पालन नहीं होता हो तो वह वास्तविक पालन नहीं कहा जाता। अतः बाह्य दृष्टि द्वारा वचन सत्य होते हुए भी जो उससे हिंसा होती हो तो वह वचन वास्तविक रीत्या असत्य ही है। विहार करते हुए साधु ने रास्ते में मृग-हरिण को जाते हुए देखा। कोई शिकारी सामने मिल गया, उसने हरिण कौनसी दिशा में गया है ? ऐसा पूछा। साधु ने हरिण के जाने की दिशा दिखाई। यहाँ पर बाह्य दृष्टि से साधु का वचन असत्य नहीं है। किन्तु उस वचन से
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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