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________________ ( 6 ) धरणेन्द्रफणच्छत्रालङ्कृतो वः श्रिये प्रभुः । दद्यात् पद्मावती देव्या, समधिष्ठितशासनः ॥ १८ ॥ अर्थ-धरणेन्द्र के फणस्वरूप छत्र से सुशोभित प्रभु हमारे कल्याण के लिए हों ओर हमें पद्मावतो देवो का सम्यक् प्रकार से शोभित शासन प्रदान करें ।। १८ ।। ध्यायेत् कमलमध्यस्थं, श्रीपार्श्वजगदीश्वरम् । ॐ ह्रीं श्रीं ह्रः समा युक्त, केवलज्ञानभास्करम् ॥ १६ ॥ अर्थ-जगत के स्वामी श्रीपार्श्वनाथ प्रभु का कमल के मध्य ध्यान धरें। वे केवलज्ञान सूर्य ॐ ह्रीं श्रीं ह्रः इस मन्त्र से सम्यक् प्रकार से युक्त हैं ।। १६ ।। पद्मावत्यान्वितं वामे, धरणेन्द्रण दक्षिणे। परितोऽष्टदलस्थेन, मन्त्रराजेन संयुतम् ॥ २० ॥ अर्थ-प्रभु के बायें पद्मावतीदेवी, दाहिने धरणेन्द्र, चारों तरफ मन्त्रराज से युक्त प्रष्ट दल कमल है ।। २० ।। अष्टपत्रस्थितः पञ्च, नमस्कारैस्तथा त्रिभिः । ज्ञानाद्ये - र्वेष्टितं नाथं, धर्मार्थ - काममोक्षदम् ॥ २१॥ अर्थ-पाठ पाँखड़ियों पर अंकित किये हुए पाँच नमस्कारों से तथा तीन ज्ञानादि से वेष्टित किये हुए प्रभु धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष प्रदान करें ॥ २१ ।। शत - षोडश - दलारूढं, विद्यादेवी - भिरन्वितम् । चतुर्विशतिपत्रस्थं, जिनं मातृ - समावृतम् ॥ २२ ॥ अर्थ-११६ एक सौ सोलह कमल-पत्रों पर आरूढ़ विद्यादेवियों से युक्त, २४ चौबीस पांखड़ो वाले कमल पर मालामों से सुशोभित श्रीजिनेश्वरदेव हैं ।। २२ ॥ माय विष्टयत्रयाग्रस्थं, क्रौंकारसहितं प्रभुम् । नवग्रहावृत्तं देवं, दिक्पाल - दशभि - वृतम् ॥ २३ ॥ अर्थ-क्रौंकार सहित प्रभु माया से तीन वार आवेष्टित हैं और नवग्रह दशदिक्पाल से प्रावृत (घिरे हुए) हैं ।। २३ ।।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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