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( १८ ) शुद्धस्फटिकसंकाशः, स्वयंभूः परमाच्युतः । व्योमाकार - स्वरूपश्च, लोकालोकावभासकः ॥ १२ ॥
अर्थ-(पाप) शुद्धस्फटिक संकाश, स्वयम्भू, परमाच्युत, व्योमाकार स्वरूप तथा लोक-प्रलोक के प्रकाशक हैं ।। १२ ॥
ज्ञानात्मा परमानन्दः, प्राणारूढो मनःस्थितिः।
मनः साध्यो मनोध्येयो, मनोदृश्य परापरः ॥ १३ ॥
अर्थ-(पाप) ज्ञानात्मा, परमानन्द, प्राणारूढ़, मनःस्थिति, मनःसाध्य, मनोध्येय, मनोदृश्य और परापर हैं ।। १३ ॥
सर्वतीर्थमयो नित्यः, सर्वदेवमयः प्रभुः। भगवान् सर्वतत्त्वेशः, शिवश्री - सौख्यदायकः ॥ १४ ॥
अर्थ-(आप) सर्वतीर्थमय, नित्य, सर्वदेवमय, प्रभु, भगवान्, सर्वतत्त्वेश और शिवश्री-सौख्यदायक हैं ।। १४ ।।
इति श्रीपार्श्वनाथस्य, सर्वज्ञस्य जगद्गुरोः। दिव्यमष्टोतरं नाम, शतमन्त्र - प्रकीर्तितम् ॥ १५ ॥
अर्थ-जगद्गुरु सर्वज्ञ श्रीपार्श्वनाथ भगवान के ये दिव्य १०८ एक सौ पाठ मन्त्र रूप नाम (ऊपर) कहे हैं ।। १५ ।।
पवित्रं परमं ध्येयं, परमानन्ददायकम् ।
भुक्ति-मुक्तिप्रदं नित्यं, पठने मङ्गल - प्रदम् ॥ १६ ॥
अर्थ-भगवान के ये नाम पवित्र हैं, परम ध्येय हैं, परम प्रानन्द को देने वाले हैं, भोग और मोक्ष को देने वाले हैं, इनका नित्य पाठ मंगलप्रद है ।। १६ ।।
श्रीमत् परमकल्याण - सिद्धिदः श्रेयसेऽस्तु वः। पार्श्वनाथजिनः श्रीमान्, भगवान् परमशिवः ॥ १७ ॥
अर्थ-परम शिव, भगवान, परम कल्याण और सिद्धिप्रदाता श्रीपार्श्वनाथ जिनेश्वर हम सबके कल्याण के लिए हों ।। १७ ।।