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________________ ( ८० ) [३] मनमन्दिर में है मूर्ति तेरी , निशदिन मैं दर्शन पाता हूँ । दरबार दिखा जिस प्रोर मुझे , श्रद्धा से शीश नमाता हूँ ।। अज्ञानी अरु छद्मस्थ 'अहो' , अरिहन्त भजे बड़भागी मैं । आराध्य मेरे अरिहन्त प्रभु , अरिहन्त - चरण - अनुरागी मैं ।। [ ४ ] मानव - तन सुरदुर्लभ प्यारे , अरिहन्त भजो अरिहन्त भजो । 'परिहन्त' नाम गुणवन्त महा , जयवन्त सदा मतिमन्त भजो । भवबन्धन है विपदा दुःखड़ा , अरिहन्त भजे बड़भागी मैं । आराध्य मेरे अरिहन्त प्रभु , अरिहन्त - चरण - अनुरागी मैं ॥ भव - पीड़ाओं से क्या डरना , अरिहन्त परमहितकारी हैं । अरिहन्त नाम की महिमा से , जगमग अन्तर्जगक्यारी है ।। अरिहन्त रंग रांचा मनवा , अरिहन्त भजे बड़भागी मैं । आराध्य मेरे । अरिहन्त प्रभु , अरिहन्त - चरण - अनुरागी मैं ॥
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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