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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ८।२०-२१ 0 नामकर्म और गोत्रकर्म की जघन्य स्थिति पाठ मुहूर्त है । (८-२०)
D शेष (बाकी बचे) ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, प्रायुष्य और अन्तराय कर्म की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त है ।। (८-२१)
प्र विवेचनामृत. .. उक्त सूत्रों (१५ से २१ तक) का सारांश इस प्रकार है
प्रारम्भ की तीन प्रकृति की अर्थात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और वेदनीय की तथा अन्तरायकर्म की उत्कृष्टस्थिति ३० कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। (१५)
मोहनीयकर्म की उत्कृष्टस्थिति ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । (१६) नाम और गोत्रकर्म की उत्कृष्टस्थिति २० कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। (१७) आयुष्यकर्म की उत्कृष्टस्थिति ३३ सागरोपम है । (१८) वेदनीयकर्म की जघन्यस्थिति १२ मुहूर्त है। (१६) नाम और गोत्रकर्म की जघन्यस्थिति पाठ मुहूर्त है। (२०)
शेष पाँच (ज्ञाना०, दर्शना०, मोह०, आयु, अन्तराय) कर्मों की जघन्यस्थिति अन्तर्मुहूर्त है। (२१)
* स्थितिबन्ध का कोष्ठक *
प्रकृति
उत्कृष्ट स्थिति
प्रकृति
जघन्य स्थिति
| (४) वेदनीय कर्म को ।
१२
३० कोड़ाकोड़ी सागरोपम
मुहूर्त
(१) ज्ञानावरणीय
दर्शनावरणीय वेदनीय
अन्तराय कर्म की (२) मोहनीय कर्म की
| (५) नाम-गोत्र कर्म
७० कोडाकोड़ी सागरोपम
मुहूर्त
की
(३) मायुष्य कर्म को
(६) ज्ञानावरणीय 'अन्तर्मुहूर्त सागरोपम
दर्शनावरणीय मोहनीय आयुष्य
जानना
अन्तराय कर्म की १. यहाँ पर आयुष्य का अन्तमुहूर्त 'क्षुल्लक भव' प्रमाण जानना। असंख्य समय = १ प्रावलिका, २५६
प्रावलिका का एक क्षुल्लकमव जानना ।